हरिद्वार। उत्तरांचल (पर्वतीय) कर्मचारी-शिक्षक संगठन हरिद्वार ने संगठन के प्रदेश अध्यक्ष सोहन सिंह रावत को ज्ञापन सौंपकर प्रदेश सरकार के द्वारा जारी किए गए फरमान को अतार्किक बताते हुए इसे वापस लेने की मांग की है।
उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड शासन कार्मिक एवं सतर्कता अनुभाग-02 के पत्र में उल्लेख है कि कोई सरकारी कर्मचारी जो अपने एक मास के वेतन अथवा 5 लाख जो भी कम हो, से अधिक मूल्य की किसी चल सम्पत्ति के सम्बन्ध में क्रय-विक्रय करता है तो रिपोर्ट तुरन्त समुचित प्राधिकारी को करेगा। प्रतिबन्ध यह है कि कोई सरकारी कर्मचारी सिवाय किसी ख्याति प्राप्त व्यापारी या अच्छी साख के अभिकर्ता के साथ या द्वारा या समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति से इस प्रकार का कोई व्यवहार नही करेगा।
जिलाध्यक्ष ललित मोहन जोशी ने कहा कि इस प्रकार का प्रतिबन्ध न केवल कर्मचारी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन है, बल्कि प्रत्येक छोटे लेनदेन पर अनावश्यक शासकीय अनुमोदन की जटिलता बढ़ा देता है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2002 के शासनादेश को 23 वर्ष पश्चात वर्ष 2025 में लागू करते समय नियमों का परीक्षण व निरीक्षण अवश्य किया जाना चाहिए था, क्योंकि तब और अब के वेतन, भत्तों, मंहगाई, वित्तीय एवं सामाजिक स्थितियों-परिस्थितियों में बड़े बदलाव हो चुके हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस आदेश का औचित्य समझ से परे है। किया कि प्रदेश संगठन के स्तर पर इस निर्णय के विरोध में शासन से तत्काल वार्ता कर इस प्रावधान को निरस्त करवाने हेतु पहल की जाए।
प्रदेश अध्यक्ष सोहन सिंह रावत ने शीघ्र ही इस मुद्दे पर ठोस एवं सकारात्मक कार्यवाही का आश्वासन दिया।
ज्ञापन प्रेषण में जिला महिला उपाध्यक्ष सुधा तिवारी, संयुक्त मंत्री मनोज चंद, जिला सम्प्रेषक अमित ममगाई, संयुक्त मंत्री देवेंद्र सिंह रावत, संगठन मंत्री संतोष डबराल, सदस्य विनीत चौहान एवं समाजसेवी देवेंद्र सिंह चौहान उपस्थित रहे।
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