बांसवाड़ा के यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के चार मैकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्रों ने कबाड़ से दो सीटर ओपन कार बनाई है। छात्रों ने इसका नाम 'रस्टर्नर' रखा है। बुधवार को कैंपस में प्रोजेक्ट की पहली राइड के बाद कुलपति ने इसे बेहतरीन अप्रोच बताते हुए इसकी तारीफ की। राइड देखने के बाद कुलपति प्रो. केएस ठाकुर ने इस उपलब्धि की सराहना की। उन्होंने कहा- यह प्रोजेक्ट कम संसाधनों में इंजीनियरिंग शिक्षा और नवाचार में व्यावहारिक दृष्टिकोण का बेहतरीन उदाहरण है। चारों अंतिम वर्ष के छात्र हैं।
अपने अंतिम वर्ष के प्रोजेक्ट के तहत इन छात्रों ने यह अनूठी चार पहिया गाड़ी बनाकर सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है। रस्टर्नर की स्पीड 40 किमी प्रति घंटा तक है। यह एक लीटर पेट्रोल में 40 किमी का सफर तय कर सकती है। यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हिमांशु पंड्या ने बताया- चारों छात्रों ने खुद ही गाड़ी डिजाइन कर बनाई है। यहां तक कि वेल्डिंग, वायरिंग और असेंबली का काम भी खुद ही किया है। कार में 80 सीसी का टीवीएस स्ट्रीट स्कूटर इंजन और कबाड़खाने से जुटाए गए पार्ट्स लगे हैं। इस प्रोजेक्ट की लागत 30 हजार रुपए आई।
राइड के दौरान दिखाई क्षमता
बुधवार (25 जून) को विश्वविद्यालय परिसर में 'रस्टर्नर' का पहला राइड शो किया गया। इस अवसर पर कुलपति प्रो. डॉ. के.एस. ठाकुर और अकादमिक सलाहकार डॉ. महिपाल सिंह मौजूद रहे। विद्यार्थियों ने अपने वाहन की दक्षता का सफल प्रदर्शन किया।
विद्यार्थियों ने बताई रस्टर्नर की खासियत
विद्यार्थियों ने बताया- रस्टर्नर में सिंगल रियर राइट व्हील ड्राइव और ब्रेकिंग सिस्टम है। जबकि स्टीयरिंग के लिए सुजुकी और नैनो की स्टीयरिंग असेंबली का इस्तेमाल किया गया है। वाहन में सिर्फ दो पैडल हैं। एक एक्सीलेटर और ब्रेक है। इसके अलावा पिछले पहियों पर शॉक एब्जॉर्बर, एलईडी फॉग लैंप, इंडिकेटर, हॉर्न और पार्किंग ब्रेक सिस्टम शामिल है। जो खास तौर पर वाहन को ढलान पर लुढ़कने से रोकता है। यह दो लोगों के सफर के लिए है। यह प्रोजेक्ट मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर डॉ. जिग्नेश पटेल, नितिन स्वर्णकार और हिमांशु पंड्या के मार्गदर्शन में पूरा हुआ।
कचरे से सर्वश्रेष्ठ बनाने का एक उदाहरण
प्रोफेसर हिमांशु पंड्या ने कहा- छात्रों ने स्क्रैप सामग्री का उपयोग करके पर्यावरण जागरूकता को भी बढ़ावा दिया। इन छात्रों में कचरे को सर्वश्रेष्ठ में बदलने की क्षमता है। छात्र रचित जैन ने कहा- हमें इस प्रोजेक्ट में तकनीकी ज्ञान को प्रैक्टिकल में लागू करना था। हमें बजट के भीतर रचनात्मक काम करना था। इसके जरिए हमने समस्या को समझना और उसका समाधान निकालना सीखा। भविष्य में हम इस वाहन को डुअल-व्हील ड्राइव, बेहतर ब्रेकिंग सिस्टम, फ्रंट सस्पेंशन और इसे सोलर पीवी वाहन में बदलने जैसे सुधार करने की योजना बना रहे हैं। इस वाहन को ग्रामीण परिवहन, कैंपस वाहन या इलेक्ट्रिक वाहन परियोजना के रूप में विकसित किया जा सकता है।
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