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सुपर थर्टी की तरह काम कर रही राजस्थान की '50 विलेजर्स' संस्था, गरीब बच्चे बन रहें डॉक्टर, इस साल 33 बच्चों का हुआ सलेक्सन

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राजस्थान विलेजर्स का नाम इस विचार के साथ रखा गया है कि हर साल 50 गांवों से 50 जरूरतमंद बच्चों का चयन किया जाए। चयन एक परीक्षा के माध्यम से किया जाता है, उसके बाद स्थानीय स्तर पर परिवार की आर्थिक स्थिति की जांच की जाती है। क्या बच्चा बीपीएल है? क्या उसके माता-पिता नहीं हैं? क्या परिवार में कोई कमाने वाला सदस्य नहीं है? '50 विलेजर्स' संगठन में कोई पेशेवर कोचिंग शिक्षक नहीं हैं। सीनियर जूनियर को पढ़ाते हैं, 10वीं के छात्र 11वीं के छात्रों को पढ़ाते हैं और 12वीं के छात्र NEET की तैयारी कराते हैं। डॉ. भरत सरन और साथी डॉक्टर मार्गदर्शन और आर्थिक सहायता देते हैं।

फैक्ट्री में काम करने को मजबूर छात्र

इस संस्था के प्रयासों का नतीजा यह हुआ कि बैतू तालुका के खाटू गांव के रहने वाले श्रवण कुमार ने इस साल सफलता की नई कहानी लिखी है। श्रवण के पिता किसान हैं और गांव में होने वाली शादियों में बर्तन धोने का काम भी करते हैं। 10वीं के बाद हालात ऐसे हो गए कि श्रवण को पढ़ाई छोड़कर बालोतरा की एक फैक्ट्री में काम करना पड़ा। लेकिन किस्मत ने तब पलटी मारी जब गांव के शिक्षक चिमनाराम ने 50 ग्रामीणों की प्रवेश परीक्षा के लिए उसका नाम भेजा। 556 अंक और NEET 2025 में AIR 2754 के साथ श्रवण अब डॉक्टर बनने की राह पर है। श्रवण अपनी सफलता से इस बात से बेहद खुश है कि अब उसके पिता को बर्तन धोने की जरूरत नहीं है।

ऐसे चलता है मिशन शुरू किया

दरअसल, भरत सारण खुद बाड़मेर के एक बेहद साधारण किसान परिवार से आते हैं। पढ़ाई के दौरान उन्हें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा। आईआईटी और मेडिकल की कोचिंग का खर्च उठाना मुश्किल था, लेकिन कुछ सामाजिक संगठनों और सीनियर्स की मदद से उन्होंने नीट पास किया और डॉक्टर बन गए। जब वे मेडिकल कॉलेज से निकले और सरकारी नौकरी में आए, तो उनके दिमाग में एक ही बात थी कि जैसे मुझे सहारा मिला, वैसे ही मैं भी किसी का सहारा बनूं। 2018 में छुट्टियों में जब भरत गांव लौटे, तो उन्होंने देखा कि कई होशियार बच्चे पैसों की कमी के कारण पढ़ाई छोड़ रहे हैं। उन्होंने अपने कॉलेज के 4-5 साथी डॉक्टरों से बात की और यहीं से '50 ग्रामजन' मिशन की शुरुआत की। पहले साल 10 बच्चों से शुरुआत की।

डॉ. भरत सारण संस्थापक 50 ग्रामजन
50 ग्रामजन संगठन राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में शिक्षा के नाम पर चल रहे कई खोखले दावों से अलग है। यहां न कोई विज्ञापन है, न कोई फीस। सिर्फ मेहनत, विश्वास और ईमानदार प्रयास ही बदलाव की कुंजी है।

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