राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत 1998 के बाद से किसी भी चुनाव में सीएम उम्मीदवार नहीं रहे हैं। लेकिन कांग्रेस की जीत के बाद उनकी ताजपोशी हुई। यह वाकया एक बार फिर चर्चा में है। राजस्थान सरकार में यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने कांग्रेस के 'फिसड्डी सरकार' वाले बयान पर कटाक्ष करते हुए यह मुद्दा उठाया है। उन्होंने 1998, 2008 और 2018 के चुनावों का जिक्र करते हुए पूछा कि उस समय किसकी पर्ची आई थी? दरअसल, इन तीनों चुनावों में गहलोत के अलावा परसराम मदेरणा (1998), सीपी जोशी (2008) और सचिन पायलट (2018) भी सीएम के प्रबल दावेदार थे। हालांकि, कांग्रेस हाईकमान ने कभी चेहरा घोषित नहीं किया।
पहले जानिए खर्रा के उस बयान के बारे में, जिसने सियासत गरमा दी
कैबिनेट मंत्री ने कहा, "1998 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने परसराम मदेरणा के चेहरे पर लड़ा था, लेकिन मुख्यमंत्री कौन बना, उस समय किसकी पर्ची आई थी। कांग्रेस ने 2008 का चुनाव सीपी जोशी के चेहरे पर लड़ा था। दुर्भाग्य से सीपी जोशी 2008 में हार गए, लेकिन उनकी सहमति के बिना फिर पर्ची आ गई। 2018 का चुनाव सचिन पायलट के चेहरे पर लड़ा गया, लेकिन दिल्ली से पर्ची किसी और के नाम पर आई। मंत्री खर्रा ने कहा कि डोटासरा जी अब अपनी पार्टी का मामला हमारे ऊपर ला रहे हैं। उनकी पार्टी सिर्फ पर्ची पर काम कर रही है।"
"मैडम चाहती हैं कि गहलोत सीएम बनें"
1998 के विधानसभा चुनाव के दौरान अशोक गहलोत प्रदेश अध्यक्ष थे। लेकिन बार-बार कहा गया कि पार्टी ने जाट दिग्गज परसराम मदेरणा के चेहरे पर चुनाव लड़ा था। उस दौरान जाटों की एकजुटता के चलते कांग्रेस ने 200 में से 153 सीटें जीती थीं। हालांकि, जब जयपुर में विधायक दल की बैठक बुलाई गई तो गहलोत को मुख्यमंत्री चुन लिया गया और परसराम मदेरणा को विधानसभा अध्यक्ष पद से संतोष करना पड़ा। 30 नवंबर 1998 को जयपुर में विधायक दल की बैठक के लिए प्रदेश कांग्रेस प्रभारी माधव राव सिंधिया के अलावा गुलाम नबी आजाद, बलराम जाखड़, मोहसिना किदवई जयपुर पहुंचे थे। बैठक में एक लाइन के प्रस्ताव के बाद अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया गया। परसराम मदेरणा को विधानसभा अध्यक्ष का पद दिया गया। बताया जाता है कि सोनिया गांधी के निर्देश पर अशोक गहलोत का नाम फाइनल हुआ था, सभी विधायकों की मन की बात जानने के बाद दिल्ली से आए चार नेताओं ने कहा था कि मैडम चाहती हैं कि अशोक गहलोत सीएम बनें। इन चार नेताओं में बलराम जाखड़ भी शामिल थे और वे मदेरणा के रिश्तेदार भी थे। पर्दे के पीछे कहा जाता है कि मदेरणा को मनाने की जिम्मेदारी उन्होंने ही ली थी, जिसके बाद मदेरणा विधानसभा अध्यक्ष बनने को राजी हुए थे।
सीपी जोशी 1 वोट से हारे और कुर्सी से दूर रहे
2008 में डॉ. सीपी जोशी प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे। उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने चुनाव जीता, लेकिन वे खुद अपनी विधानसभा सीट हार गए। नाथद्वारा सीट पर डॉ. जोशी का मुकाबला भाजपा के कल्याण सिंह से था। कांटे की टक्कर वाले इस चुनाव में 71.5% मतदान हुआ। 1 लाख 32 हजार 7 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। चुनाव में कल्याण सिंह को 62 हजार 216 वोट मिले। डॉ. सीपी जोशी को 62 हजार 215 वोट मिले। महज 1 वोट से हारे जोशी ने सीएम पद के लिए अपनी दावेदारी जरूर कमजोर की, लेकिन वे रेस में बने रहे। कहा जाता है कि इस हार के बाद वे विधायकों को अपने पक्ष में करने में सफल नहीं हुए और उन्होंने दिल्ली की राजनीति का रुख कर लिया। कांग्रेस 99 पर ऑल आउट, गहलोत का जादू फिर चला
2013 के चुनाव में 21 सीटों पर सिमटी कांग्रेस ने संगठन स्तर पर मजबूती से काम किया। तत्कालीन अध्यक्ष सचिन पायलट ने मोर्चा संभाला और वसुंधरा राजे सरकार के खिलाफ सड़कों पर विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया। जब 2018 के चुनाव परिणाम आए तो कांग्रेस 99 सीटें जीतने में सफल रही। हालांकि इस दौरान निर्दलीय और अन्य दलों की भूमिका भी काफी अहम रही और इस पायलट पिछड़ गए। चुनाव में भाजपा को 73, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को 6, निर्दलीयों को 13, आरएलपी को 3, सीपीएम को 2, बीटीपी को 2 और आरएलडी को 1 सीट मिली। चूंकि कांग्रेस ने चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद के लिए किसी एक चेहरे को प्रोजेक्ट नहीं किया था। ऐसे में गहलोत और पायलट दोनों ही मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे। कांग्रेस से बगावत कर निर्दलीय चुनाव जीतने वाले विधायकों ने गहलोत का समर्थन किया, जिससे उनकी स्थिति और मजबूत हुई।
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