ओमान खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) का पहला सदस्य बनने जा रहा है जहां अधिक आमदनी वाले लोगों को इनकम टैक्स देना होगा.
सरकारी एलान के मुताबिक़, यह क़ानून साल 2028 से लागू होगा.
इसके तहत सालाना 42 हज़ार ओमानी रियाल (लगभग ₹93.5 लाख) से ज़्यादा की आमदनी पर 5 फ़ीसद टैक्स लगेगा. यह टैक्स ओमान के नागरिकों के अलावा वहां काम कर रहे विदेशियों पर भी लागू होगा.
जीसीसी के बाक़ी पांच सदस्य देश तेल और गैस से समृद्ध हैं और वहां व्यक्तिगत आय पर कोई टैक्स नहीं लगाया जाता. यही टैक्स-फ़्री माहौल सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और क़तर जैसे देशों को विदेशी कामगारों के लिए आकर्षक बनाता है.
ओमान के इस फ़ैसले ने देश के भीतर इस टैक्स की आर्थिक, सामाजिक और निवेश के लिहाज से अहमियत को लेकर नई बहस शुरू कर दी है.
साल 2024 में ओमान की कुल सरकारी आमदनी का बड़ा हिस्सा—क़रीब 19.3 अरब डॉलर—तेल से आया. लेकिन वित्त मंत्री सईद बिन मोहम्मद अल-स़क़री का कहना है कि यह नया टैक्स सरकारी राजस्व के स्रोतों में विविधता लाने और तेल पर निर्भरता घटाने में मदद करेगा.
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क्या है वजह
ओमानी अर्थशास्त्री डॉक्टर अहमद बिन सईद कशोब के मुताबिक़, यह टैक्स आंतरिक और बाहरी दबावों के चलते लाया गया है.
उनका कहना है कि दशकों से तेल पर निर्भर रहने के कारण ओमान की अर्थव्यवस्था को भारी उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है. उनके मुताबिक सार्वजनिक क़र्ज़ में बढ़ोतरी और कल्याणकारी योजनाओं पर बढ़ता ख़र्च भी इसकी वजह है.
उन्होंने बीबीसी से कहा कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) जैसी संस्थाओं की सिफ़ारिशों ने भी ओमान को पारदर्शी वित्तीय सुधारों की दिशा में बढ़ने को प्रेरित किया.
एक अन्य ओमानी अर्थशास्त्री ख़लफ़ान अल-तूकी का कहना है कि यह फ़ैसला ओमान में पहले से लागू एक व्यापक टैक्स ढांचे का हिस्सा बनेगा.
देश में पहले से चार प्रकार के टैक्स लागू हैं-वैल्यू एडेड टैक्स (वैट), कॉरपोरेट टैक्स, एक्साइज़ टैक्स और मीठे पदार्थों पर टैक्स. उनके मुताबिक़, इन सबके बीच आयकर इस प्रणाली की अंतिम और ज़रूरी कड़ी है.
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इस क़ानून के तहत 42 हज़ार ओमानी रियाल से कम सालाना आमदनी वालों को टैक्स से छूट दी जाएगी, जिससे आबादी का 99 फ़ीसद हिस्सा इस दायरे से बाहर रहेगा. डॉक्टर कशोब के अनुसार, इससे मध्यम और निम्न आय वर्ग पर कोई बोझ नहीं पड़ेगा.
हालांकि उन्होंने माना कि इस टैक्स के कुछ नकारात्मक असर भी हो सकते हैं. उनके मुताबिक़, कुछ प्रवासी टैक्स से बचने के लिए देश छोड़ सकते हैं और विदेशी निवेश में भी कमी आ सकती है. लेकिन फ़ायदे के तौर पर उन्होंने बताया कि इससे ओमान की वित्तीय पारदर्शिता बढ़ेगी और सरकारी ख़र्चों में सुधार होगा.
डॉक्टर कशोब का सुझाव है कि सरकार को टैक्स के साथ ऐसी छूट और प्रोत्साहन देने चाहिए जिनसे कारोबारी माहौल पर असर न पड़े. जैसे, स्टार्टअप्स, इनोवेशन और विदेशी निवेश को टैक्स में राहत देना.
वहीं, ख़लफ़ान अल-तूकी ने आशंका जताई कि टैक्स चोरी आसान हो सकती है, ख़ासकर एक सीमित आकार की अर्थव्यवस्था में जहाँ निगरानी के तंत्र मज़बूत नहीं हैं. उन्होंने कहा कि कुछ लोगों ने टैक्स से बचाव के लिए अकाउंटेंट खोजना शुरू कर दिया है.
अल-तूकी ने यह भी कहा कि यह टैक्स विदेशी निवेश को प्रभावित कर सकता है और ओमान से पूँजी का पलायन बढ़ा सकता है. उनके मुताबिक़, असली अमीरों से टैक्स वसूलना चुनौतीपूर्ण होगा क्योंकि वे अक्सर अपनी पूँजी विदेश भेज देते हैं.
उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को मौजूदा टैक्स जैसे कॉरपोरेट टैक्स और वैट को और प्रभावी बनाना चाहिए. उन्होंने वैट को 1 प्रतिशत बढ़ाकर 6 प्रतिशत करने की सिफ़ारिश की, जिससे आम लोगों पर असर कम होगा लेकिन राजस्व बढ़ेगा.
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ओमान की 2024 की कुल बजट राशि क़रीब 30.26 अरब डॉलर थी. डॉक्टर कशोब के मुताबिक़ साल 2028 से लगाए जाने वाले आयकर से अनुमानित राजस्व सिर्फ़ 23 करोड़ डॉलर के आसपास होगा. उनका मानना है कि टैक्स की उपयोगिता सिर्फ़ वित्तीय लाभ में नहीं बल्कि बेहतर निगरानी, डेटा पारदर्शिता और नीति निर्माण की दिशा में होगी.
उनका कहना है कि अगर टैक्स को पारदर्शी और न्यायसंगत तरीक़े से लागू किया गया, तो यह सामाजिक न्याय का अहम ज़रिया बन सकता है.
उन्होंने कहा, "सिर्फ़ उच्च आमदनी पर टैक्स लगाना वित्तीय ज़िम्मेदारी का संतुलन दर्शाता है. लेकिन ज़रूरी है कि टैक्स की आमदनी का इस्तेमाल शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन-स्तर सुधार में हो, ताकि लोग महसूस करें कि उनका योगदान देश के विकास में लगा है."
इसके विपरीत, अल-तूकी का मानना है कि यह टैक्स सामाजिक न्याय हासिल करने में कारगर नहीं होगा. उन्होंने कहा, "99 फ़ीसद टैक्स से छूट पाने वाले लोग, टैक्स देने वाले 1 फ़ीसद को लालची समझ सकते हैं, जो ग़लत सोच है."
कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर ओमान इस नीति को सफलतापूर्वक लागू कर सका, तो यह खाड़ी के अन्य देशों के लिए मिसाल बन सकती है.
हालांकि, अल-तूकी को नहीं लगता कि जीसीसी के अन्य देश यह मॉडल अपनाएँगे. उनके अनुसार, टैक्स-फ़्री माहौल ही इन देशों की निवेश नीति का आधार है.
सरकारी नज़रिए से देखा जाए, तो यह टैक्स व्यवस्था वित्तीय स्थिरता और सामाजिक संतुलन लाने की कोशिश है. लेकिन इसके संभावित नकारात्मक प्रभाव, जैसे निवेश और प्रतिभा का पलायन अब भी चर्चा का विषय है.
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा टैक्स ढांचे को बेहतर बनाना ज़्यादा व्यावहारिक और कम जोखिम वाला विकल्प होता.
जो भी हो, ओमान की यह पहल अब पूरे खाड़ी क्षेत्र में नज़रों में है. अगर यह नीति सामाजिक और आर्थिक ज़रूरतों के साथ वित्तीय संतुलन कायम कर पाई, तो यह खाड़ी की टैक्स नीति में एक बड़ा बदलाव साबित हो सकती है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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