ये साल 2023 के आख़िरी और 2024 के शुरुआती महीनों की बात है.
कुछ सार्वजनिक कार्यक्रमों और बिहार विधानसभा के सत्र में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भाषण और प्रतिक्रियाओं को लेकर सोशल मीडिया पर चर्चा होने लगी.
क्लिप्स वायरल हुए. इन वीडियोज़ को शेयर करते हुए विपक्ष ने कहना शुरू कर दिया कि नीतीश कुमार थक चुके हैं और वो भ्रमित दिखाई पड़ते हैं.
राज्य सरकार और जेडीयू के साथ-साथ बीजेपी ने इसे ख़ारिज किया. उनका कहना था कि नीतीश कुमार बिल्कुल ठीक हैं और सरकार का नेतृत्व करने में सक्षम हैं.
लेकिन नीतीश कुमार की सेहत बिहार में लगातार चर्चा का विषय बनी रही.
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए मतदान की तारीख़ क़रीब आ रही है. पार्टियाँ उम्मीदवारों को टिकट दे रही हैं और दोनों प्रमुख गठबंधनों में कुछ असंतोष के स्वर भी सुनाई दे रहे हैं.
इसकी गूँज जेडीयू के दफ़्तर में भी सुनी जा सकती है.
टिकट बँटवारे और सीटों के आबंटन को लेकर नाराज़गी ज़ाहिर कर रहे जेडीयू के कुछ कार्यकर्ता पार्टी ऑफ़िस के भीतर ही खुलकर ये कहते सुनाई देते हैं कि नीतीश कुमार की सेहत प्रभावित हुई है.
उनके मुताबिक़, जब वो कुछ ठीक होते हैं तो पार्टी में चीज़ें सही होने लगती हैं लेकिन जैसे ही स्वास्थ्य बिगड़ता है, पार्टी पर उनकी कमान भी ढीली पड़ने लगती है.
उनका कहना है कि इसका नतीजा ये होता है कि पार्टी के कुछ नेता अपनी मनमानी करते हैं, जो पार्टी की सेहत के लिए ठीक नहीं है.
दूसरी ओर हमें कई ऐसे कार्यकर्ता भी मिले, जो इन बातों को अफ़वाह बताते हैं.
उनका कहना है कि नीतीश कुमार बिल्कुल फ़िट हैं और गठबंधन में सीटों के बँटवारे से लेकर टिकट देने तक सारे फ़ैसले वही कर रहे हैं.
ऐसे में सच्चाई क्या है, किसके दावे में कितनी प्रमाणिकता है, ये समझने के लिए मैंने बिहार के कुछ वरिष्ठ पत्रकारों, जेडीयू के नेताओं और नीतीश कुमार के पुराने मित्र बताए जाने वाले पूर्व एमएलसी एवं लेखक प्रेम कुमार मणि से बात की.
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लेखक और बिहार में इंडियन एक्सप्रेस के ब्यूरो प्रमुख संतोष सिंह का कहना है कि यह बात आंशिक रूप से सही है कि जेडीयू साल 2018 वाली पार्टी नहीं रही. लेकिन नीतीश कुमार ख़राब स्वास्थ्य के बावजूद भी मैदान में डटे हुए हैं.
वहीं नीतीश कुमार की राजनीति को पिछले चार दशकों से भी अधिक समय से फ़ॉलो करने वाले वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी का कहना है कि इससे पहले हुए चुनावों की तुलना में नीतीश कुमार की सक्रियता पार्टी और चुनाव से जुड़े फ़ैसलों में कम हुई है.
कन्हैया भेलारी का कहना है, ''अगर नीतीश कुमार की सेहत ठीक होती, तो उनकी पार्टी का टिकट दिल्ली में तय नहीं होता. पार्टी के अहम फ़ैसले जैसे टिकट और सीटों से जुड़े निर्णय की ज़िम्मेदारी किसी और को नहीं सौंपी गई होती.''
जेडीयू के अहम फ़ैसले कौन ले रहा है- इस सवाल के जवाब में वो कहते हैं, ''संजय झा (जेडीयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष), लल्लन सिंह (केंद्रीय मंत्री), विजय कुमार चौधरी (बिहार सरकार में मंत्री), ललन सर्राफ़ (विधान परिषद के सदस्य), संजय गांधी (विधान परिषद के सदस्य) को ज़िम्मेदारी दी गई है. ये सब नीतीश कुमार के क़रीबी लोग हैं और यही लोग सारी चीज़ें तय कर रहे हैं, सीट आबंटन से लेकर टिकट बँटवारे तक."

वरिष्ठ पत्रकार फ़ैज़ान अहमद की भी कुछ यही राय है.
उनके मुताबिक़, ''कुछ महीनों या बीते तक़रीबन एक साल से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सेहत में गिरावट आई है. वो इस स्थिति में नहीं हैं कि बहुत से फ़ैसले कर सकें या चुनाव में पार्टी के मसलों को निपटा सकें. इसलिए कहा जाता है कि शायद उनके क़रीबी लोग फिर चाहे वो नेता हों या अधिकारी, वो उन्हें गाइड करते हैं."
हालाँकि संतोष सिंह का मानना है कि लोकप्रिय धारणा के विपरीत नीतीश कुमार अभी भी महत्वपूर्ण निर्णय लेते हैं, ख़ासकर चुनाव से जुड़े मामलों में.
वो कहते हैं, ''ये अलग बात है कि उनकी पार्टी के कुछ सहयोगी तथ्यों, पृष्ठभूमि और संदर्भ के साथ उनका सहयोग करते हैं. हाल का उनका निर्णय जिसमें उन्होंने बीजेपी से सीट का वितरण नए सिरे से करवाया, ख़ासकर चिराग पासवान को दिए जाने वाले कुछ सीट पर, ये दर्शाता है कि नीतीश अभी भी राजनीतिक निर्णय लेने में सक्षम हैं.''
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संतोष सिंह यहाँ जिस प्रकरण की बात कर रहे हैं, उसका ज़िक्र और उसकी पुष्टि कन्हैया भेलारी और (नाम न छापने की शर्त पर) जेडीयू के एक नेता भी करते हैं.
इन सभी के मुताबिक़ एनडीए में सीटों की संख्या का बँटवारा तो हो गया था, लेकिन कौन सी सीट, किसे मिली इसकी आधिकारिक सूची जारी नहीं की गई थी.
मीडिया में एलजेपी (आर) खेमे की 29 सीटों की लिस्ट चलने लगी. इस लिस्ट में कुछ वैसी सीटें भी शामिल थीं, जो जेडीयू के मौजूदा विधायकों की थी और पार्टी की परंपरागत सीटें थीं.
जैसे सोनबरसा सीट, यहाँ से जेडीयू के रत्नेश सदा विधायक हैं और बिहार सरकार में मंत्री भी हैं.
कन्हैया भेलारी का कहना है, ''जब सीटें मीडिया में चलने लगीं, तो हड़कंप मच गया. रत्नेश सदा रोते हुए पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव मनीष वर्मा के पास गए कि क्या हमारा टिकट कट गया, वो संजय गांधी को लेकर मुख्यमंत्री से मिले और उनकी बातें सुनकर मुख्यमंत्री भी चौंक गए. उन्होंने पूछा कि ये कैसे हो गया, ये तो हमारी सीटें हैं, ये एलजेपी के खाते में कैसे जा सकती हैं?"
वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी का दावा है कि इस प्रकरण के बाद नीतीश कुमार ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के सामने गहरा रोष जताया और फिर अगले 24 घंटे में पार्टी ने सीट के साथ अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी, उन चार सीटों पर भी जिनको लेकर कहा जा रहा था कि ये एलजेपी (आर) के खाते में चली गई हैं.
ये सीटे हैं - गायघाट, राजगीर, सोनबरसा और मोरवा.
हालाँकि आधिकारिक तौर पर तो एनडीए या चिराग पासवान की तरफ़ से ऐसी कोई सूची जारी नहीं की गई थी, जिसमें ये साफ़ हो कि वाकई ये सीटें एलजेपी (आर) के खाते में गई थीं या नहीं.
जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा ने इसी का हवाला देते हुए इन ख़बरों को निराधार बताया है.
उन्होंने कहा, ''आजकल तथ्य कुछ नहीं रहता है, उसको लोग बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर देते हैं और हमलोग आश्चर्य में रहते हैं कि ये बात कहाँ से आ गई है.''
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बीबीसी हिन्दी से बातचीत में जब संजय झा से पूछा गया कि इन दावों पर वो क्या कहेंगे कि सीट शेयरिंग से लेकर टिकट बँटवारे में नीतीश कुमार की उतनी सक्रिय भूमिका नहीं रही, जितनी पहले के चुनावों में हुआ करती थी.
जवाब में संजय झा ने कहा, ''ये शुद्ध रूप से विपक्ष के एजेंडे को बढ़ाने जैसा है. विपक्ष को पता है कि बिहार का रिज़ल्ट क्या आने वाला है. वो विकास के एजेंडे पर बात नहीं कर सकते. वो नीतीश कुमार के काम पर बात नहीं कर सकते, तो वो जेडीयू में क्या फ़ैसला होता है, जेडीयू में क्या तय होता है, इसमें क्यों इतनी दिलचस्पी है."
उन्होंने आगे कहा, "जेडीयू में जो भी फ़ैसला होता है, वो नीतीश कुमार जी करते हैं और अकेले नहीं करते वो सबसे चर्चा करके, पार्टी में जो भी लीडर है, उनसे बात करके फ़ैसला लेते हैं. चाहे वो सीट शेयरिंग का सवाल हो या टिकट बँटवारे का, वो एक बार नहीं, चार जगह से फ़ीडबैक लेते हैं. इसलिए ये प्रश्न पूछना ही, मैं ऑन रिकॉर्ड बोल रहा हूँ. उनके एजेंडा को आगे बढ़ाने वाली बात है.''
हालाँकि जेडीयू के ही एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर हमें बताया कि जेडीयू में फ़ैसले लेने वाले तीन चेहरे हैं - लल्लन सिंह, संजय झा और विजय चौधरी.
''नीतीश कुमार के बाद लल्लन सिंह पार्टी में नंबर दो की भूमिका में हैं. लेकिन ऐसा नहीं है कि नीतीश कुमार जी को फै़सलों के बारे में बताया नहीं जाता. उनके पास हर चीज़ की ब्रीफ़िंग जाती है. वो सभी चीज़ों से अवगत रहते हैं. उनकी मानसिक सेहत दुरुस्त नहीं है, तो कई बार उन्हें चीज़ें याद नहीं रहती, वो पहले के मुक़ाबले साउंड नहीं रहे.''

कुछ वरिष्ठ पत्रकार दावा करते हैं कि जेडीयू में फ़ैसले लेने वाले इन चेहरों की निष्ठा जेडीयू से ज़्यादा बीजेपी से जुड़ी है. जेडीयू के ये नेता इस दावे को ठोस नहीं मानते.
उनका कहना है, "आरसीपी सिंह का हश्र हम सब ने देखा है. ऐसे में कोई भी इस तरह की ग़लती नहीं करेगा. इनकी अहमियत तभी तक है, जब तक ये बीजेपी और जेडीयू के ब्रिज का काम कर रहे हैं. कल को अगर इन्होंने कुछ ऊपर-नीचे करने की कोशिश की भी, तो बदले में उन्हें कुछ नहीं मिलेगा. बीजेपी उन्हें मुख्यमंत्री तो नहीं बनाएगी. इसलिए मुझे नहीं लगता कि ऐसा कुछ है, बीजेपी के हित साधने के लिए काम नहीं होता."
वहीं अपने ऊपर लगने वाले आरोपों को बेबुनियाद और बेतुका बताते हुए संजय झा कहते हैं, ''देखिए अगर आप ये इंटरव्यू करने आई हैं, तो ये एक एजेंडा बेस्ड इंटरव्यू है आपका. मैं इस पर कोई वर्ज़न नहीं दूंगा, मैं भी कहूँगा कि आप किसी का ब्रीफ़ लेकर इंटरव्यू कर रही हैं. किससे आपने बात की, कौन रिपोर्टर है. यहाँ का बहुत सारा रिपोर्टर किस एजेंडे पर काम करता है, ये कभी चेक करिए."
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नीतीश कुमार की सेहत को लेकर बीजेपी भी जेडीयू के साथ नज़र आती है. हालाँकि पिछले कुछ वर्षों के दौरान दोनों पार्टियों के रिश्ते उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं.
कई बार नीतीश कुमार ने बीजेपी का साथ छोड़ा, तो कई बार साथ भी आए. फ़िलहाल वे बीजेपी के समर्थन से राज्य सरकार चला रहे हैं.
बीजेपी के पूर्व विधायक और प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल कहते हैं कि नीतीश कुमार जी पूरी तरह से स्वस्थ हैं और पूरी तरह से अपने काम को बखूबी कर रहे हैं.
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, " नीतीश कुमार एक-एक चीज़ों को बहुत ही सूक्ष्म तरीक़े से अध्ययन करते हैं, देखते हैं और ख़ुद निरीक्षण करते हैं. वे लगातार पूरे बिहार में घूमते रहे. नीतीश कुमार एक-एक चीज़ों को मॉनिटरिंग करके विकास के कार्य को कैसे धरातल पर उतार सकें और ऐसे विकास के कार्य को कैसे आगे बढ़ा सकें, ये भी करते रहे हैं."
उन्होंने कहा कि कोई भी निर्णय नीतीश कुमार जी के इच्छा के विरुद्ध जेडीयू में नहीं हो सकता है. नीतीश कुमार जी की जो इच्छा होती है, वही चलता है.
बिहार की प्रमुख विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) कई बार नीतीश कुमार की सेहत पर सवाल उठा चुकी है.
पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव तो ये भी कह चुके हैं कि नीतीश कुमार कोई फ़ैसले नहीं लेते.
पार्टी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं कि वे चाहते हैं कि आदरणीय मुख्यमंत्री जी स्वस्थ रहें.
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "सार्वजनिक मंचों पर जब अजीबोगरीब हरकतों वाली वीडियो आती है तो फिर चिंता होती है कि आख़िर आदरणीय नीतीश कुमार जी की ये हालत किसने कर दी?"
मृत्युंजय तिवारी ने आगे कहा, "यह तो तेजस्वी यादव जी ने कई मौक़ों पर कहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी अचेत हैं. उनका लोगों से मिलना-जुलना नहीं, मीडिया से वे दूर रहते हैं. प्रदेश के 14 करोड़ जनता का भविष्य उनके हाथों में है. तो ऐसे मुख्यमंत्री से बिहार का भला कैसे हो सकता है? इसलिए तेजस्वी जी कहते हैं कि आदरणीय नीतीश कुमार जी अब रिटायर्ड हैं. अब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहने योग्य यह हालत में नहीं है."
जेडीयू के मौजूदा नेताओं के बारे में वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह का कहना है, ''जेडीयू जहाँ एक ज़माने में जॉर्ज फर्नांडीस, शरद यादव, दिग्विजय सिंह जैसे क़द्दावर नेताओं के विचारों से प्रभावित रहती थी. वहीं आज उनके राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय कुमार झा हैं, जिनका समाजवादी विचारधारा से दूर-दूर तक कुछ लेना देना नहीं है. नीतीश आंशिक विस्मृति से राजनीति करते हुए भी अभी भी बीजेपी से ज़रूर कुछ अलग दिखते हैं."
वे आगे कहते हैं, "लेकिन नीतीश कुमार के हालिया कुछ फ़ैसलों को देखकर नहीं लगता कि ये उनकी सोच की उपज है. इसमें बीजेपी का प्रभाव साफ़ तौर पर नज़र आता है. जैसे- नीतीश कुमार कभी भी रेवड़ी बाँटने वाली राजनीति में विश्वास नहीं करते थे लेकिन इस बार मुफ़्त 125 मेगावाट बिजली, 1.21 करोड़ महिला उद्यमयियों के लिए 10-10 हज़ार रुपए देने का निर्णय लिया गया. मुमकिन है कि ये निर्णय उन्होंने भारी मन से लिया हो.''
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सभी वरिष्ठ पत्रकारों ने इस बात को लेकर भी नाराज़गी ज़ाहिर की कि नीतीश कुमार अब मीडिया से बात नहीं करते. पहले समय-समय पर प्रेस ब्रीफ़िग हुआ करती थी, अब वो भी बंद हो चुकी है. उनसे मिलने के सारे रास्ते बंद कर दिए गए है.
इन आरोपों पर संजय झा का कहना है, ''जब ज़रूरत होगी वो ज़रूर बात करेंगे, चुनावी कैंपेन में भी नज़र आएँगे.''
आख़िर साल 2005 और साल 2025 के नीतीश कुमार में क्या बदला है. ये समझने के लिए हम पहुँचे प्रेम कुमार मणि के पास.
वो एक लेखक और जेडीयू के पूर्व एमएलसी हैं. वे नीतीश कुमार के पुराने साथी माने जाते हैं.
हमने उनसे पूछा कि वो नीतीश कुमार की सेहत और उसके कारण कथित तौर पर प्रभावित हुई उनकी कार्यक्षमता से जुड़ी ख़बरों को कैसे देखते हैं.
प्रेम कुमार मणि बताते हैं, ''हमने नीतीश कुमार को एक लंबे अरसे से देखा है, जिस दिन सरकार बनी थी नीतीश कुमार की 2005 में, तो मैं याद कर पाता हूँ कि नीतीश कुमार ने एक गहरी साँस लेते हुए मुझसे कहा था कि आराम का समय नहीं है. काम का समय है, बहुत काम करना है. मैं तब उनकी इस बात से भावुक हो गया था, उन्हें मैं देश के भावी प्रधानमंत्री के तौर पर देखता था.''

''वो एक पक्के समाजवादी थे, एक कंघी 20 साल चलाने वाले बिल्कुल ही साधारण पृष्ठभूमि से आने वाले किसान के बेटे, जिसके घर के बाहर की दीवार पर गोबर के उपले थोपे नज़र आते थे, कच्ची छत वाला मकान था. तो वैसी पृष्ठभूमि से आने वाले व्यक्ति, जो मेरे मित्र भी हैं, उनकी मौजूदा स्थिति देखकर स्वाभाविक रूप से मैं भावुक हो जाता हूँ."
"लेकिन फिर भी मैं कहूँगा कि नीतीश कुमार के होने का एक मतलब है. वो मतलब ये है कि जब वो नहीं रहेंगे, तब उनका मूल्य आँका जाएगा.''
उन्होंने कहा कि चाहे जितना भी पतन हो गया हो, फिर भी नीतीश कुमार ने बिहार में सांप्रदायिक ताकतों को मज़बूत होने से रोका हुआ है, राज्य को नफ़रत की राजनीति में धकेले जाने से बचाया हुआ है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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