तुर्की यूक्रेन को ड्रोन भी दे रहा है और रूस से ऊर्जा आयात भी कर रहा है. तुर्की नेटो का सदस्य भी है और ब्रिक्स समिट में भी जाता है.
तुर्की इसराइल का खुलकर विरोध भी करता है और सीरिया में अमेरिका समर्थित कुर्द बलों पर हमला भी करता रहा है.
तुर्की ने रूस के ख़िलाफ़ पश्चिमी देशों के प्रतिबंध में शामिल होने से इनकार कर दिया था. तुर्की रूस से अरबों डॉलर का तेल ख़रीद रहा है.
तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन इन सारी चीज़ों को एक साथ मैनेज कर रहे हैं फिर भी ट्रंप उनसे नाराज़ नहीं हैं.
यहाँ तक कि ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में ईरान पर प्रतिबंध लगाया था, इस प्रतिबंध का उल्लंघन करने वाले तुर्की के एक बैंक पर पेनल्टी लगाने में देरी की थी.
भारत भी रणनीतिक स्वायत्तता की नीति के तहत रूस से तेल ख़रीद रहा है और क्वॉड के साथ ब्रिक्स में भी है लेकिन ट्रंप का रुख़ यहां बिल्कुल अलग है.
ट्रंप ने इस साल 20 जनवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति की कमान संभालने के बाद से ऐसे कई फ़ैसले लिए हैं जो भारत के हितों पर चोट करते हैं.
अमेरिका ने भारत पर 50 फ़ीसदी टैरिफ़ लगा दिया जबकि तुर्की पर केवल 15 प्रतिशत.
अर्दोआन की तारीफ़तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन 2019 के बाद पहली बार द्विपक्षीय दौरे पर अमेरिका जा रहे हैं. इससे पहले अर्दोआन ट्रंप के पहले कार्यकाल में 2019 में व्हाइट हाउस गए थे.
जो बाइडन से अर्दोआन के संबंध तनाव भरे रहे थे. बाइडन अक्सर अर्दोआन पर निरंकुश शासन का आरोप लगाते थे. लेकिन ट्रंप अर्दोआन की तारीफ़ तब से कर रहे हैं, जब वह राष्ट्रपति नहीं बने थे.
2012 में इस्तांबुल में ट्रंप टावर के उद्घाटन के मौक़े पर डोनाल्ड ट्रंप ने अर्दोआन की तारीफ़ करते हुए कहा था कि उनका दुनिया भर में बहुत आदर है.
ट्रंपने कहा था, ''अर्दोआन बहुत अच्छे व्यक्ति हैं. तुर्की के लोगों का वह बहुत अच्छे से प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.''
राष्ट्रपति बनने के बाद भी ट्रंप ने अर्दोआन को अपना दोस्त और बेहतरीन नेता बताया था. वैसे ट्रंप तारीफ़ तो पीएम मोदी की भी करते हैं और अपना दोस्त बताते हैं लेकिन यह दोस्ती भारत के हितों पर चोट रोकने में अभी तक नाकाम रही है.
हालांकि ट्रंप के पहले कार्यकाल में अमेरिका ने नेटो सहयोगी तुर्की को एफ़-35 फाइटर जेट प्रोग्राम से बाहर कर दिया था. तुर्की ने रूस से एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम ख़रीदा था और अमेरिका को यह रास नहीं आया था. इसी के जवाब में तुर्की को एफ-35 प्रोग्राम से बाहर कर दिया था.
अर्दोआन 25 सितंबर को व्हाइट हाउस पहुँच रहे हैं और ट्रंप से उनकी द्विपक्षीय बातचीत होगी.
ट्रंप ने 19 सितंबर को ट्रूथ सोशल पर अर्दोआन के व्हाइट हाउस आने की घोषणा करते हुए लिखा था, ''हम तुर्की के राष्ट्रपति के साथ कई कारोबारी और सैन्य समझौते पर काम कर रहे हैं. इनमें बड़े पैमाने पर बोइंग एयरक्राफ्ट की ख़रीद और एफ-16 डील शामिल हैं. इसके अलावा एफ़-35 पर भी बातचीत जारी रहेगी. हम उम्मीद कर रहे हैं कि सारी चीज़ें सकारात्मक रहेंगी.''
- एर्तरुल: तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन का इस्लामिक राष्ट्रवाद कैसे फैलाया जा रहा है?
- तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन और पीएम मोदी में तुलना कितनी सही
- मोदी की हिन्दुत्व वाली छवि खाड़ी के इस्लामिक देशों में बाधा क्यों नहीं बनी

वहीं अर्दोआन ने जुलाई में कहा था कि वह ट्रंप के साथ स्टेट-ऑफ-द-आर्ट जेट्स को लेकर एक समझौते पर पहुँच गए हैं. अर्दोआन ने कहा था कि एफ-35 की डिलिवरी ट्रंप के इसी कार्यकाल में धीरे-धीरे होगी.
द पॉलिटिको से 15 सितंबर को आईसीआईएस कंसल्टेंसी की सीनियर एनर्जी एनालिस्ट औरा सबादुस ने कहा था कि पिछले साल तुर्की ने अपने कुल गैस आयात का 41 प्रतिशत हिस्सा रूस से ख़रीदा था.
केप्लर कमोडिटिज फर्म के क्रूड एनलिस्ट हुमायूं फलकशाही ने पॉलिटिको से ही कहा था कि तुर्की ने अपने कुल तेल आयात का 57 फ़ीसदी तेल रूस से लिया था. ऐसा तब है, जब ट्रंप नेटो से तेल आयात बंद करने की अपील कर चुके हैं.
ऐसे में सवाल उठता है कि ट्रंप भारत की तरह अर्दोआन को लेकर इतने सख़्त क्यों नहीं हैं?
तुर्की दुनिया भर में अपने ख़ास लोकेशन की वजह से काफ़ी अहम मुल्क है. इसी वजह से तुर्की नेटो का अहम सहयोगी माना जाता है. तुर्की ब्लैक सी तक की पहुँच को कंट्रोल करता है. तुर्की यूरोप, एशिया और मध्य-पूर्व में एक रणनीतिक ब्रिज की तरह माना जाता है.
दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के पश्चिम एशिया अध्ययन केंद्र में प्रोफ़ेसर अश्विनी महापात्रा कहते हैं, ''तुर्की जहाँ स्थित है, उसकी उपेक्षा नेटो नहीं कर सकता है. इसीलिए अर्दोआन की मनमानी को भी नेटो बर्दाश्त करता है. भारत के साथ ऐसा नहीं है. अगर ट्रंप को लगता कि भारत को नाराज़ करना, अमेरिका के हक़ में नहीं है तो 50 फ़ीसदी टैरिफ़ कभी नहीं लगाते.''
प्रोफ़ेसर महापात्रा कहते हैं, ''ट्रंप के सहयोगी यूक्रेन वॉर को मोदी वॉर कह रहे हैं. तुर्की और चीन भी रूस से तेल ख़रीद रहे हैं लेकिन इनके लिए अमेरिका से ऐसी बातें कभी नहीं कही गईं. तुर्की तो यूक्रेन को ड्रोन भी दे रहा है और रूस से तेल भी ख़रीद रहा है लेकिन न तो यूक्रेन की अर्दोआन से कोई कड़वाहट है और न ही रूस की. इस मामले में देखें तो अर्दोआन की यह सफलता ही है.''
तुर्की की अहमियतयह बहुत व्यावहारिक नहीं है कि तुर्की रूस से ऊर्जा आयात बंद करने के अनुरोध को स्वीकार करे. तुर्की में महंगाई तेज़ी से बढ़ी है, ऐसे में ऊर्जा की क़ीमत और बढ़ी तो असंतोष बढ़ सकता है. दूसरी तरफ़ अर्दोआन सत्ता से अभी बाहर नहीं होना चाहते हैं.
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के पश्चिम एशिया अध्ययन केंद्र में ही प्रोफ़ेसर रहे एके पाशा भी मानते हैं कि तुर्की नेटो में बहुत ख़ास न केवल अपने लोकेशन की वजह से है बल्कि बड़ी आर्मी के कारण भी है. प्रोफ़ेसर पाशा कहते हैं कि अगर रूस के ख़िलाफ़ पश्चिमी देश एकजुट होते हैं तो नेटो में तुर्की की सबसे अहम भूमिका होगी.
प्रोफ़ेसर पाशा कहते हैं, ''अर्दोआन ने ईयू और अमेरिका दोनों के दबाव को एक साथ झेला है. इसके बावजूद उन्होंने किसी के सामने हथियार नहीं डाले. अर्दोआन ने वही किया जो तुर्की के हित में था. बाइडन तो अर्दोआन से मिलते तक नहीं थे. लेकिन ट्रंप का सत्ता में आना अर्दोआन के हक़ में जाना ही था. ट्रंप फैमिली का इस्तांबुल में कारोबार भी है. भारत को भी लग रहा था कि ट्रंप के आने से उसके हित ख़तरे में नहीं पड़ेंगे लेकिन यह एक ग़लत आकलन था.''
प्रोफ़ेसर पाशा कहते हैं, ''तुर्की अज़रबैजान से पाइपलाइन के ज़रिए इसराइल में तेल सप्लाई भी करता रहा है और इसराइल की आलोचना भी करता है. अर्दोआन किसी की नहीं सुनते हैं और हाल के वर्षों में हर मुश्किल को मैनेज करने में भी सफल रहे हैं. सीरिया में बशर अल असद की सरकार उनके लिए समस्या थी, अब वह भी ख़त्म हो गई है. भारत के साथ कई दिक़्क़तें हैं. एक तो बड़ी दिक़्क़त पाकिस्तान है. अमेरिका को जब भी लगता है कि भारत अपने मन से फ़ैसले ले रहा है तो पाकिस्तान का इस्तेमाल करना शुरू कर देता है. ट्रंप अभी ऐसा ही कर रहे हैं.''
राष्ट्रपति अर्दोआन के प्रति ट्रंप के उदार रुख़ से प्रोफ़ेसर महापात्रा बहुत हैरान नहीं हैं.
उनका मानना है कि अर्दोआन को जब भी पश्चिम से बहुत तवज्जो नहीं मिलती है तो रूस और इस्लामिक देशों की तरफ़ रुख़ करते हैं.
अर्दोआन की नीति की सफलताप्रोफ़ेसर महापात्रा कहते हैं, ''तुर्की को जब ट्रंप से तवज्जो मिल रही है तो उसे हाथोंहाथ लेंगे ही. ईयू ने तुर्की को शामिल नहीं किया. बाइडन अर्दोआन को पसंद नहीं करते थे. ऐसे में अर्दोआन का रूस के संबंध बढ़ाना स्वाभाविक था.''
ब्लूमबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ''तुर्की अमेरिका के साथ एक नया ऊर्जा समझौता करने की तैयारी कर रहा है. तुर्की कमोडिटी और डिफेंस डील के ज़रिए अमेरिका से संबंध मज़बूत करने की तैयारी में है. नए समझौते में तुर्की अमेरिका से ज़्यादा एलएनजी ख़रीदने का वादा कर सकता है.''
वॉशिंगटन इंस्टिट्यूट में टर्किश रिसर्च प्रोग्राम के निदेशक सोनेर कगाप्तय ने अर्दोआन पर 'अ सुल्तान इन ऑटोमन' नाम से एक किताब लिखी है.
इस किताब में उन्होंने लिखा है, ''अर्दोआन ने सत्ता में रहने के दौरान ख़ुद को उम्मीद से ज़्यादा मज़बूत किया. इराक़, सीरिया और लीबिया में प्रभावी सैन्य अभियान को अंजाम दिया और तुर्की की राजनीतिक ताक़त का अहसास करवाया. जहाँ तुर्की राजनयिक ताक़त बनने में नाकाम रहा, वहाँ उसकी सैन्य ताक़त ने भरपाई कर दी.''
2021 के सितंबर में अर्दोआन न्यूयॉर्क में यूएन की आम सभा को संबोधित करने गए थे. अर्दोआन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से मिलना चाहते थे लेकिन मुलाक़ात नहीं हो पाई थी. अर्दोआन इससे नाराज़ हो गए थे और वह रूसी राष्ट्रपति पुतिन से मिलने चले गए थे.
निक्केई एशिया से अमेरिका के एक पूर्व सैन्य अधिकारी रिच ऑटज़ेन ने अर्दोआन की विदेशी नीति के बारे में कहा था, ''तुर्की के पास चौतरफ़ा बैलेंसिंग मैकनिज़म है. अर्दोआन यूरोप से पश्चिम तक संतुलन चाहते हैं. इस्लामिक दुनिया से लेकर साउथ तक और पूरब में यूरेशिया के अलावा उत्तर में रूस तक अपना संबंध चाहते हैं. जब भी वह किसी एक तरफ़ ख़तरा महसूस करते हैं, दूसरी तरफ़ मुड़ जाते हैं.''
कई लोग मानते हैं कि तुर्की रूस और अमेरिका के गेम में कई बार ख़ुद ही फँस जाता है. कहा जाता है कि तुर्की इस तरह का गेम लंबे समय से खेलता रहा है. कई बार तुर्की को गेम में रूस से समझौता करना पड़ता है.
अर्दोआन की पुतिन से दोस्ती2016 में 15 जुलाई को तुर्की की आर्मी के एक गुट ने अर्दोआन को सत्ता से बेदख़ल करने की कोशिश की थी.
2016 में तुर्की में जब तख़्तापलट नाकाम रहा तो अर्दोआन इस बात को लेकर आश्वस्त थे कि इसके पीछे अमेरिका में रह रहे स्व-निर्वासित इस्लामिक स्कॉलर फ़तुल्लाह गुलेन हैं.
तुर्की अमेरिका से गुलेन के प्रत्यर्पण की मांग लंबे समय से करता रहा है. अमेरिका ने तुर्की की मांग कभी नहीं मानी. इस मामले में अर्दोआन का शक अमेरिका पर बढ़ता गया. हालांकि गुलेन का पिछले साल अक्तूबर में निधन हो गया था.
कहा जाता है कि रूस ने इस स्थिति को मौक़े की तरह लिया और इसका पर्याप्त दोहन किया. 'अ सुल्तान इन ऑटोमन' में सोनेर कगाप्तय ने लिखा है, ''पुतिन इस बात को बख़ूबी जानते थे कि गुलेन अमेरिका में रहते हैं. तुर्की में कई लोग इस बात को तत्काल मानने के लिए तैयार हो गए थे कि तख्तापलट की कोशिश के पीछे अमेरिका का हाथ था."
"तख्तापलट की कोशिश वाली उथल-पुथल में 250 से ज़्यादा लोगों की जान गई थी. इसमें अर्दोआन के कुछ क़रीबी भी थे. तब पुतिन दुनिया के पहले नेता थे, जिसने अर्दोआन से संपर्क किया था. पुतिन ने विचलित अर्दोआन को अपने गृहनगर सेंट पीटर्सबर्ग बुलाया था.''
''अर्दोआन के पास तब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का कोई फोन नहीं आया था. जब चार दिन बाद वॉशिगंटन से अर्दोआन के पास फोन आया तो लाइन पर तत्कालीन विदेश मंत्री जॉन केरी थे. तख्तापलट की कोशिश के तीन हफ़्ते बाद अर्दोआन सेंट पीटर्सबर्ग पहुँचे थे और पुतिन से मुलाक़ात की थी.''
सोनेर कगाप्तय ने लिखा है, ''पुतिन से दोस्ती के बाद अर्दोआन के लिए अलग होना आसान नहीं था. दोनों देशों के संबंधों में शक्ति का असंतुलन स्पष्ट रूप से दिखा. अगर तुर्की एस-400 से पीछे हटता तो पुतिन ट्रेड और टूरिज़म को रोक देते जो तुर्की की अर्थव्यवस्था के लिए राजस्व पैदा करने का अहम ज़रिया है. पुतिन अर्दोआन की वैश्विक स्तर पर मज़बूत छवि को भी गंभीर नुक़सान पहुँचा सकते हैं. वैश्विक स्तर पर अर्दोआन की मज़बूत छवि से उन्हें अपने घर में ख़ूब फ़ायदा मिला है.''
लेकिन कई विश्लेषकों का मानना है कि अर्दोआन को सियासी और अंतरराष्ट्रीय मुश्किलों से निकलना आता है. पिछले दो दशकों में अर्दोआन ने कई मुश्किल परिस्थितियों का सामना किया है और मज़बूत बनकर निकले हैं.
2003 के पहले तुर्की में सेना का दबदबा रहता था. आधुनिक तुर्की की नींव रखने वाले मुस्तफ़ा कमाल अतातुर्क भी फ़ौज से ही आए थे. तुर्की की अर्थव्यवस्था में भी फ़ौज का ही ज़्यादा दखल था. तख़्तालट भी तुर्की में होता रहता था. अर्दोआन ने इसे ख़त्म किया.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
You may also like
खाटूश्यामजी पुजारियों ने सरकार के खिलाफ खोला मोर्चा, कलेक्टर से मिलकर मुख्यमंत्री को ददिया चेतावनी संदेश
प्रधानमंत्री मोदी पर चर्चा: नई किताबों का विमोचन और विचारों का आदान-प्रदान
रेलवे टेंडर घोटाला मामले में 13 अक्टूबर को फैसला सुनाएगी राऊज एवेन्यू कोर्ट
अभिषेक शर्मा ने रचा इतिहास, कोहली-सूर्या के क्लब में शामिल होकर यह कारनामा करने वाले बने तीसरे भारतीय बल्लेबाज
सीडब्ल्यूसी की बैठक जनता को गुमराह करने के लिए : राजके पुरोहित