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लोग तो कहते ही रहेंगे... रूढ़िवादी मिडिल क्लास परिवार से निकलकर इस महिला ने खड़ा किया 1600 करोड़ का एम्पायर

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लोग क्या कहेंगे? यह सवाल अक्सर लोगों के खासकर महिलाओं के सपनों के आड़े आता है. भारत की बेटियों ने लगभग हर क्षेत्र में अपना परचम लहराया है. लेकिन आज भी कुछ ऐसे रूढ़िवादी परिवार हैं, जहां महिलाओं के सपने केवल सपने बनकर रह जाते हैं. लेकिन आज हम आपको एक ऐसी महिला के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने अपने बिजनेस की नींव रखने के बाद न केवल समाज बल्कि अपने घर वालों की आलोचनाओं का सामना किया. हम बात कर रहे हैं रिचा कर की. जिन्होंने इन आलोचनाओं की परवाह किए बिना न केवल जिवामे की नींव रखकर अपने लिए एक नई राह बनाई, बल्कि 1600 करोड़ रुपये से ज्यादा का बिजनेस एम्पायर खड़ा कर दिखाया.



रिचा की साधारण जड़ों से असाधारण शुरुआत17 जुलाई 1980 को झारखंड के जमशेदपुर में रिचा कर का जन्म एक रूढ़िवादी मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था. उनके पिता टाटा स्टील में काम करते थे. परिवार में पारंपरिक मूल्यों और सामाजिक मान्यताओं को खूब तवज्जो दी जाती थी. लेकिन रिचा के सपने इन सीमाओं से कहीं बड़े थे. उन्होंने बिट्स पिलानी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. उस समय यह किसी लड़की के लिए आसान नहीं था.

साल 2007 में उन्होंने मुंबई के नरसी मॉन्जी इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज से पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा हासिल किया और बाद में मास्टर्स डिग्री भी पूरी की. वे शुरू से कुछ बड़ा करना चाहती थीं. पढ़ाई पूरी करने के बाद रिचा ने आईटी क्षेत्र में कदम रखा और स्पेंसर रिटेल और एसएपी रिटेल कंसल्टेंसी जैसी प्रतिष्ठित कंपनियों में काम किया. इस दौरान उन्होंने रिटेल और मार्केटिंग की गहरी समझ हासिल की. जो उनके बिजनेस में काफी काम आई.



विक्टोरिया सीक्रेट में काम के दौरान आया आइडियारिचा के करियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब वे विक्टोरिया सीक्रेट में काम कर रही थीं. इस दौरान उन्हें एहसास हुआ कि भारतीय बाजार में लॉन्जरी खरीदना महिलाओं के लिए एक असहज और चुनौतीपूर्ण अनुभव है. महिलाओं के लिए दुकानों में सीमित विकल्प, प्राइवेसी की कमी और सही साइज न मिलने की समस्या आम थी. इसे रिचा ने एक अवसर के रूप में पहचाना. यहीं से जिवामे का विचार जन्मा.



जिवामे की शुरुआतसाल 2011 में रिचा ने अपने पति और सह-संस्थापक विवेक कर के साथ मिलकर जिवामे की शुरुआत की. यह भारत का पहला ऑनलाइन लॉन्जरी ब्रांड था, जिसका उद्देश्य था महिलाओं को स्टाइलिश, आरामदायक और किफायती लॉन्जरी उपलब्ध कराना, वो भी पूरी प्राइवेसी के साथ. लेकिन उस दौरान न केवल समाज बल्कि रिचा को अपने परिवार से भी आलोचनाओं और सवालों का सामना करना पड़ा. क्योंकि रूढ़िवादी समाज में महिलाओं का लॉन्जरी जैसे विषय पर खुलकर बात करना और उसका बिजनेस शुरू करना आसान नहीं होता. हालांकि इन सभी को नजरअंदाज करते हुए रिचा ने अपने बिजनेस पर फोकस किया. शुरुआती दौर में फंडिंग जुटाना भी चुनौतीपूर्ण था, लेकिन अपनी बचत और उधार लेकर इस सपने को हकीकत में बदला.



जिवामे ने लॉन्जरी खरीदारी को न केवल सुविधाजनक बनाया, बल्कि इसे एक सशक्त अनुभव में बदल दिया. ग्राहकों का भरोसा जीतने के साथ, जिवामे जल्द ही भारत का विक्टोरिया सीक्रेट बन गया. कंपनी की ऊंची उड़ान को देखते हुए साल 2015 में रत्न टाटा ने भी इसमें निवेश किया. जिस कंपनी की कीमत कई मिलियन डॉलर हो गई.

साल 2020 में रिलायंस रिटेल एंड ब्रांड्स के मालिक मुकेश अंबानी ने जिवामे का अधिग्रहण कर लिया. साल 2017 में ही रिचा ने सीईओ के पद से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन वे बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स में अभी भी शामिल हैं. आज जिवामे की वैल्यूएशन 1600 करोड़ रुपये से भी ज्यादा ही चुकी है, और यह ब्रांड लाखों भारतीय महिलाओं के लिए आत्मविश्वास और सहजता का प्रतीक बन गया है.



रिचा कर की जिंदगी हमें सिखाती है कि सपने वही सच होते हैं, जिनका पीछा करने की हिम्मत हो. चाहे आप किसी छोटे शहर से हों, रूढ़िवादी परिवार से हों, या समाज आपको पीछे खींचे, अगर आपके पास जुनून और मेहनत है, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है. रिचा ने यह भी कर दिखाया कि सही समय पर यदि अवसरों को पहचान कर उन्हें पूरा करने के लिए कदम उठाया जाए तो आप भी इतिहास रच सकते हैं.

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