जब भी कोई नया फ्लैट खरीदते है तो हम आमतौर पर उसकी सिर्फ बेसिक कीमत को ध्यान में रख कर खरीदते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि प्रॉपर्टी की असली कॉस्ट केवल उसकी कीमत तक सीमित नहीं होती है, बल्कि उसके साथ कई ऐसे ज्यादा खर्चे जुड़े होते हैं जो शुरुआत में दिखाई तो नहीं देते, लेकिन धीरे-धीरे सामने आकर आपके बजट पर बड़ा असर डाल देते हैं। बता दे इनमें सरकारी टैक्स, रजिस्ट्रेशन फीस, मेंटेनेंस चार्जेस, इंटीरियर खर्च, पार्किंग फीस और कई बार कानूनी या ब्रोकर से जुड़ी फीस भी शामिल होती है। इन पर छिपे हुए खर्चों को नजरअंदाज करना आपकी फाइनेंशियल प्लानिंग को खराब कर सकता है और आखिरी समय पर परेशानी का कारण बन सकता है। इसलिए यह जरूरी है कि फ्लैट खरीदने से पहले ही इन सभी खर्चों को समझा जाए और सही जानकारी ली जाए साथ ही उन्हें अपनी टोटल कॉस्ट और बजट प्लानिंग का हिस्सा बनाया जाए।
स्टांप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन फीस
फ्लैट की कीमत के अलावा जो सबसे बड़ा खर्च आता है, वह है स्टांप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन फीस है। स्टांप ड्यूटी वह टैक्स होता है जो सरकार को देना होता है, ताकि प्रॉपर्टी आपके नाम कानूनी रूप से ट्रांसफर हो सके। यह हर राज्य में अलग-अलग होती है, लेकिन ज्यादा तर यह 5% से 7% तक होती है। इसके अलावा रजिस्ट्रेशन फीस लगभग 1% होती है। ये दोनों मिलकर आपकी टोटल कॉस्ट का एक बड़ा हिस्सा बनाते हैं, इसलिए इन्हें नजरअंदाज करना आपको भारी पड़ सकता है।
GST
अगर आप अंडर-कंस्ट्रक्शन फ्लैट खरीद रहे हैं, तो आपको GST देना होता है। फिलहाल में ऐसे फ्लैट पर 5% GST लगता है, जबकि अफोर्डेबल हाउसिंग पर यह दर केवल 1% है। लेकिन आप ऐसा फ्लैट खरीद रहे हैं जिसे कंप्लीशन सर्टिफिकेट मिल चुका है, तो उस पर कोई GST नहीं लगता। इसलिए यह फैसला लेते समय यह ज़रूर सोचें कि रेडी-टू-मूव फ्लैट लेना आपके लिए ज्यादा फायदेमंद हो सकता है।
मेंटेनेन्स और सोसायटी चार्जेस
फ्लैट की चाबी लेने से पहले ही बिल्डर आपसे एकमुश्त मेंटेनेन्स डिपॉजिट की मांग कर सकता है, जो कि सामान्य सुविधाओं जैसे लिफ्ट, सिक्योरिटी, गार्डन आदि की देखरेख के लिए होता है। इसके अलावा, हर महीने या तिमाही में नियमित सोसायटी चार्जेस देने होते हैं। ये चार्जेस आपके फ्लैट के साइज और सोसायटी में मिलने वाली सुविधाओं पर निर्भर करते हैं। इसलिए खरीद से पहले मेंटेनेन्स पॉलिसी और भविष्य में बढ़ने वाले चार्जेस के बारे में पूरी जानकारी ले लें।
पार्किंग और क्लब हाउस से जुड़े खर्चे
अक्सर लोग सोचते हैं कि पार्किंग फ्लैट की कीमत में शामिल होती है, लेकिन सच ये है कि बिल्डर इसके लिए अलग से चार्ज करते हैं। अनकवरड, कवरड या स्टिल्ट पार्किंग के लिए 2 लाख से 10 लाख रुपये तक वसूले जा सकते हैं, जो लोकेशन और प्रोजेक्ट की कैटेगरी पर निर्भर करता है। इसी तरह, क्लबहाउस, जिम जैसी सुविधाओं के लिए भी अलग मेंबरशिप ली जा सकती है, जो टोटल कॉस्ट को बढ़ा देती है।
इंटीरियर खर्चेनया फ्लैट, खासकर अगर वह अंडर-कंस्ट्रक्शन हो, तो आमतौर पर अधूरा ही सौंपा जाता है। इसमें फर्नीचर, लाइटिंग, इलेक्ट्रिक फिटिंग्स, मॉड्यूलर किचन, वार्डरोब आदि शामिल नहीं होते। ये सभी चीजें आपको खुद करवानी पड़ती हैं, और इन पर आपकी प्रॉपर्टी की कीमत का लगभग 10-15% तक खर्च हो सकता है। इसलिए इंटीरियर का बजट भी पहले से आप तैयार रखें।
लीगल और ब्रोकरेज फीस
प्रॉपर्टी से जुड़े सभी दस्तावेज़ों की जांच करवाना बहुत जरूरी होता है, जिससे यह मालूम हो सके कि जमीन पर कोई कानूनी विवाद या दावा नहीं है। इसके लिए एक वकील की मदद लेना आपके लिए समझदारी की बात होगी जिसकी लिए आपको कुछ फीस देनी होगी। अगर आप फ्लैट किसी एजेंट या ब्रोकर के माध्यम से खरीदते हैं, तो 1-2% तक की ब्रोकरेज फीस भी देनी पड़ सकती है, जो आपकी टोटल कॉस्ट में और जुड़ जाती है।
एरिया और लोकेशन की सच्चाईकई बार बिल्डर फ्लैट का एरिया बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं। वे सुपर बिल्ट-अप एरिया दिखाकर ग्राहक को आकर्षित करते हैं, जबकि कार्पेट एरिया बहुत कम निकलता है। इसके अलावा पार्किंग की स्थिति भी बाद में पता चलती है जैसे कि जगह कम होना या शेयर करनी पड़ना। कुछ प्रोजेक्ट की लोकेशन भी वादे के अनुसार नहीं होती, जैसे कि मेन रोड से दूरी, खराब अप्रोच या ट्रैफिक की समस्या। इसलिए साइट विज़िट ज़रूर करें जिससे आपको आगे चल कर परेशानी ना हो।
इन खर्चों को समझना क्यों ज़रूरी है?अगर आप इन सभी खर्चों को नजरअंदाज करते हैं, तो आखिरी वक्त में आपका बजट बिगड़ सकता है और मानसिक तनाव भी बढ़ सकता है। फ्लैट की बेसिक कीमत देखकर ही निर्णय लेना समझदारी नहीं है बल्कि हर छोटे-बड़े खर्च को समझकर और दस्तावेज़ देखकर साथ ही सही सलाह लेकर ही फ्लैट खरीदें।
स्टांप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन फीस
फ्लैट की कीमत के अलावा जो सबसे बड़ा खर्च आता है, वह है स्टांप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन फीस है। स्टांप ड्यूटी वह टैक्स होता है जो सरकार को देना होता है, ताकि प्रॉपर्टी आपके नाम कानूनी रूप से ट्रांसफर हो सके। यह हर राज्य में अलग-अलग होती है, लेकिन ज्यादा तर यह 5% से 7% तक होती है। इसके अलावा रजिस्ट्रेशन फीस लगभग 1% होती है। ये दोनों मिलकर आपकी टोटल कॉस्ट का एक बड़ा हिस्सा बनाते हैं, इसलिए इन्हें नजरअंदाज करना आपको भारी पड़ सकता है।
GST
अगर आप अंडर-कंस्ट्रक्शन फ्लैट खरीद रहे हैं, तो आपको GST देना होता है। फिलहाल में ऐसे फ्लैट पर 5% GST लगता है, जबकि अफोर्डेबल हाउसिंग पर यह दर केवल 1% है। लेकिन आप ऐसा फ्लैट खरीद रहे हैं जिसे कंप्लीशन सर्टिफिकेट मिल चुका है, तो उस पर कोई GST नहीं लगता। इसलिए यह फैसला लेते समय यह ज़रूर सोचें कि रेडी-टू-मूव फ्लैट लेना आपके लिए ज्यादा फायदेमंद हो सकता है।
मेंटेनेन्स और सोसायटी चार्जेस
फ्लैट की चाबी लेने से पहले ही बिल्डर आपसे एकमुश्त मेंटेनेन्स डिपॉजिट की मांग कर सकता है, जो कि सामान्य सुविधाओं जैसे लिफ्ट, सिक्योरिटी, गार्डन आदि की देखरेख के लिए होता है। इसके अलावा, हर महीने या तिमाही में नियमित सोसायटी चार्जेस देने होते हैं। ये चार्जेस आपके फ्लैट के साइज और सोसायटी में मिलने वाली सुविधाओं पर निर्भर करते हैं। इसलिए खरीद से पहले मेंटेनेन्स पॉलिसी और भविष्य में बढ़ने वाले चार्जेस के बारे में पूरी जानकारी ले लें।
पार्किंग और क्लब हाउस से जुड़े खर्चे
अक्सर लोग सोचते हैं कि पार्किंग फ्लैट की कीमत में शामिल होती है, लेकिन सच ये है कि बिल्डर इसके लिए अलग से चार्ज करते हैं। अनकवरड, कवरड या स्टिल्ट पार्किंग के लिए 2 लाख से 10 लाख रुपये तक वसूले जा सकते हैं, जो लोकेशन और प्रोजेक्ट की कैटेगरी पर निर्भर करता है। इसी तरह, क्लबहाउस, जिम जैसी सुविधाओं के लिए भी अलग मेंबरशिप ली जा सकती है, जो टोटल कॉस्ट को बढ़ा देती है।
इंटीरियर खर्चेनया फ्लैट, खासकर अगर वह अंडर-कंस्ट्रक्शन हो, तो आमतौर पर अधूरा ही सौंपा जाता है। इसमें फर्नीचर, लाइटिंग, इलेक्ट्रिक फिटिंग्स, मॉड्यूलर किचन, वार्डरोब आदि शामिल नहीं होते। ये सभी चीजें आपको खुद करवानी पड़ती हैं, और इन पर आपकी प्रॉपर्टी की कीमत का लगभग 10-15% तक खर्च हो सकता है। इसलिए इंटीरियर का बजट भी पहले से आप तैयार रखें।
लीगल और ब्रोकरेज फीस
प्रॉपर्टी से जुड़े सभी दस्तावेज़ों की जांच करवाना बहुत जरूरी होता है, जिससे यह मालूम हो सके कि जमीन पर कोई कानूनी विवाद या दावा नहीं है। इसके लिए एक वकील की मदद लेना आपके लिए समझदारी की बात होगी जिसकी लिए आपको कुछ फीस देनी होगी। अगर आप फ्लैट किसी एजेंट या ब्रोकर के माध्यम से खरीदते हैं, तो 1-2% तक की ब्रोकरेज फीस भी देनी पड़ सकती है, जो आपकी टोटल कॉस्ट में और जुड़ जाती है।
एरिया और लोकेशन की सच्चाईकई बार बिल्डर फ्लैट का एरिया बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं। वे सुपर बिल्ट-अप एरिया दिखाकर ग्राहक को आकर्षित करते हैं, जबकि कार्पेट एरिया बहुत कम निकलता है। इसके अलावा पार्किंग की स्थिति भी बाद में पता चलती है जैसे कि जगह कम होना या शेयर करनी पड़ना। कुछ प्रोजेक्ट की लोकेशन भी वादे के अनुसार नहीं होती, जैसे कि मेन रोड से दूरी, खराब अप्रोच या ट्रैफिक की समस्या। इसलिए साइट विज़िट ज़रूर करें जिससे आपको आगे चल कर परेशानी ना हो।
इन खर्चों को समझना क्यों ज़रूरी है?अगर आप इन सभी खर्चों को नजरअंदाज करते हैं, तो आखिरी वक्त में आपका बजट बिगड़ सकता है और मानसिक तनाव भी बढ़ सकता है। फ्लैट की बेसिक कीमत देखकर ही निर्णय लेना समझदारी नहीं है बल्कि हर छोटे-बड़े खर्च को समझकर और दस्तावेज़ देखकर साथ ही सही सलाह लेकर ही फ्लैट खरीदें।
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