वाराणसी, 4 अक्टूबर . काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में योग शिक्षा को नई ऊंचाई देने के लिए एम.ए. योग पाठ्यक्रम की शुरुआत होने जा रही है. संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के अंतर्गत वैदिक दर्शन विभाग द्वारा संचालित यह दो वर्षीय स्नातकोत्तर कोर्स चार सेमेस्टर में विभाजित होगा.
पाठ्यक्रम का मुख्य फोकस पतंजलि योग पद्धति के सैद्धांतिक, व्यावहारिक और प्रयोगात्मक पक्षों पर रहेगा. छात्रों को पतंजलि योग सूत्र, भगवद्गीता तथा अन्य योग ग्रंथों का गहन अध्ययन कराया जाएगा, साथ ही आसन, प्राणायाम, मुद्रा, बंध तथा सत्कर्म जैसी योग क्रियाओं का व्यावहारिक प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाएगा.
विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस कोर्स की फीस अन्य संस्थानों की तुलना में काफी कम रखी है, जो महामना मदन मोहन मालवीय के संकल्प ‘कम शुल्क में उच्च गुणवत्ता की शिक्षा’ को साकार करने का प्रयास है. प्रवेश प्रक्रिया तथा आरक्षण India Government और विश्वविद्यालय के नियमों के अनुरूप होंगे. यह कोर्स शिक्षकों और छात्रों की लंबे समय से चली आ रही मांग पर शुरू हो रहा है.
बीएचयू की अकादमिक काउंसिल की बैठक 27 सितंबर को हुई, जिसमें इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से मंजूरी मिली. विभागाध्यक्ष के अनुसार, पूर्वांचल क्षेत्र में इस प्रकार का पाठ्यक्रम किसी अन्य विश्वविद्यालय में उपलब्ध नहीं है. यूजीसी द्वारा योग विषय में नेट परीक्षा आयोजित होने से यह कोर्स विद्यार्थियों के करियर के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा.
संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के प्रमुख प्रोफेसर राजाराम शुक्ल ने से कहा, “हमारी योग विद्या को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त हो चुकी है. विश्व के प्रत्येक राष्ट्र में पूरे सम्मान के साथ योग का अभ्यास किया जाता है. अब दो साल का यह कोर्स संचालित किया जा रहा है, जिसमें चार सेमेस्टर होंगे. यह पाठ्यक्रम योग की प्राचीन भारतीय परंपरा को आधुनिक संदर्भ में मजबूत करेगा.”
वैदिक दर्शन विभाग के प्रोफेसर शशिकांत द्विवेदी ने बताया, “पाठ्यक्रम सैद्धांतिक ज्ञान और प्रायोगिक प्रशिक्षण को समान महत्व देता है, ताकि छात्र योग को जीवन और समाज में लागू कर सकें.”
वर्तमान शोध छात्र सुनाक्षु तिवारी ने कहा, “यह कोर्स पूर्वांचल के युवाओं के लिए वरदान साबित होगा, खासकर नेट जैसी परीक्षाओं के लिए.”
पूर्व छात्र शिवम तिवारी ने उत्साह जताते हुए कहा, “बीएचयू से योग शिक्षा मिलना गर्व की बात है, यह स्वास्थ्य और आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देगा.”
–आईएनएस
एससीएच/डीएससी
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