राजस्थान के उदयपुर स्थित आवरी माता मंदिर में रह रही 72 वर्षीय मादा हथिनी रामू ने आज अंतिम सांस ली। बीते डेढ़ महीने से उसकी हालत लगातार गंभीर बनी हुई थी। क्रोनिक फुट रोट नामक जटिल बीमारी ने उसके पैरों को बुरी तरह प्रभावित कर दिया था। उसके तलवे अलग हो चुके थे और नाखून झड़ने से वह चलने-फिरने में असमर्थ हो गई थी। घावों में सड़न, सूजन और नेक्रोसिस के स्पष्ट लक्षण देखे जा रहे थे। हालत इतनी बिगड़ चुकी थी कि वह खड़ी भी नहीं हो पा रही थी।
वन विभाग और वाइल्डलाइफ एसओएस की अथक कोशिशें
राजस्थान वन विभाग और वाइल्डलाइफ एसओएस ने रामू की जान बचाने के लिए हरसंभव प्रयास किए। आधुनिक चिकित्सा तकनीकों जैसे पोर्टेबल एक्स-रे, लेजर थेरेपी, और नियमित घाव की ड्रेसिंग का सहारा लिया गया। हर 36 घंटे में हाइड्रा क्रेन से उसकी स्थिति बदली जाती थी। प्रतिदिन उसे 40–60 लीटर तक की फ्लूइड थेरेपी दी जाती, साथ ही कूलिंग सिस्टम, गद्देदार टेंट बिस्तर, और चौबीसों घंटे देखभाल की भी व्यवस्था की गई थी। इन प्रयासों के बावजूद उसकी स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ।
रामू को वर्ष 1992 में बिहार के सोनपुर पशु मेले से लाया गया था। तभी से वह सड़कों पर घूमती रही और कई बार कठिनाइयों और उपेक्षा का सामना करती रही। बढ़ती उम्र के साथ उसकी सेहत में गिरावट आती गई, जिससे जीवन की गुणवत्ता भी प्रभावित हुई।
हाथी अस्पताल में भेजने की सिफारिश हुई थी
अप्रैल 2024 में राजस्थान के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक ने हाई पॉवर कमेटी को रामू की चिंताजनक स्थिति की जानकारी दी थी। समिति ने निर्णय लिया कि रामू को मथुरा स्थित हाथी अस्पताल में स्थानांतरित किया जाए, जिसे वाइल्डलाइफ एसओएस और उत्तर प्रदेश वन विभाग द्वारा संचालित किया जाता है। लेकिन दुर्भाग्यवश, मालिक और महावत ने लिखित आदेशों का पालन नहीं किया, जिस कारण समय पर रामू को विशेष उपचार नहीं मिल पाया।
रामू का दुखद अंत, बची थी एक उम्मीद
रामू की मृत्यु ने सभी को गहरी पीड़ा दी है। पशु कल्याण से जुड़े लोगों और संगठनों का मानना है कि यदि समय पर समुचित देखभाल और स्थानांतरण संभव हो पाता, तो उसकी जान बच सकती थी। यह घटना एक बार फिर इस बात को रेखांकित करती है कि पशु कल्याण, ज़िम्मेदारी और समय पर कार्रवाई कितनी महत्वपूर्ण होती है।
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