भुवनेश्वर के कलिंगा इंस्टिट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल टेक्नॉलजी (KIIT) में ढाई महीने के भीतर एक और नेपाली छात्रा की मौत होना केवल इस प्राइवेट यूनिवर्सिटी की छवि पर धक्का नहीं है- इससे भारत के विदेशी स्टूडेंट्स को आकर्षित करने के प्रयासों पर भी चोट पहुंची है। ओडिशा पुलिस ने मामला आत्महत्या का बताया है, लेकिन फिर भी केस की गहराई से छानबीन होनी चाहिए। विश्वविद्यालय प्रशासन को इस बार उन गलतियों से बचना होगा, जो फरवरी में हुई थीं। कूटनीतिक संकट की वजह: 18 साल की छात्रा बीटेक कंप्यूटर साइंस की फर्स्ट ईयर की स्टूडेंट थी और उसका शव हॉस्टल रूम में मिला। इससे पहले 16 फरवरी को बीटेक थर्ड ईयर की एक नेपाली स्टूडेंट ने आत्महत्या कर ली थी और उसमें एक छात्र पर प्रताड़ित करने का आरोप लगा था। लेकिन असली दिक्कत हुई विश्वविद्यालय प्रशासन की लापरवाही से और इसने भारत-नेपाल के बीच कूटनीतिक संकट की स्थिति ला दी थी। तब नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली तक को छात्रा के लिए न्याय की मांग करनी पड़ी थी और इसके बाद कुछ सख्त कदम उठाए गए थे। इस बार ओडिशा सरकार और यूनिवर्सिटी, दोनों पर जिम्मेदारी है कि वैसी नौबत न आए। नकारात्मक असर से बचाव: भारत सरकार ने 2018 में स्टडी इन इंडिया (SII) प्रोग्राम शुरू किया, जिसका मकसद है विदेशी स्टूडेंट्स को भारत बुलाना। अब विदेशी छात्र किसी देश में इस भरोसे के साथ जाते हैं कि वहां उन्हें समानता और सुरक्षा के साथ बेहतर शिक्षा हासिल करने का मौका मिलेगा। लेकिन जब एक ही संस्थान में इस तरह की दो घटनाएं हो जाएं, तो भरोसा टूटता है। KIIT का नकारात्मक असर बाकी जगहों पर न पड़े, इसका ख्याल रखना होगा। टॉप देशों से पीछे: अंतरराष्ट्रीय छात्रों को लुभाने के मामले में भारत वैसे भी बहुत पीछे है। 2021-22 में कुल 46,878 विदेशी स्टूडेंट्स ने ही भारत में एडमिशन के लिए अप्लाई किया था। इसमें सबसे ज्यादा करीब 28% स्टूडेंट्स नेपाल से आए थे। पिछले बरसों के मुकाबले यह आंकड़ा बेहतर जरूर हुआ है, लेकिन दुनिया के टॉप एजुकेशन डेस्टिनेशन की तुलना में कुछ भी नहीं। 2024 में अमेरिका में लगभग 11.26, कनाडा में 8.42 और ब्रिटेन में 7.58 लाख विदेशी स्टूडेंट्स पहुंचे थे। केवल भारत से ही 2024 में 13.35 लाख छात्र पढ़ने के लिए बाहर निकले थे। माहौल सुधारना होगा: इन आंकड़ों को सुधारने के लिए देश को शैक्षणिक संस्थाओं के माहौल पर भी ध्यान देना होगा। UGC की गाइडलाइंस कहती हैं कि सभी शैक्षणिक संस्थान में ऐसी कमिटी होनी चाहिए, जो स्टूडेंट्स की विभिन्न समस्याओं को समझ और उनका निवारण कर सकें। जिन कैंपस में विदेशी स्टूडेंट्स हैं, वहां इन कमिटी की जरूरत और बढ़ जाती है।
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