नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने रक्षा मंत्रालय की 300 याचिकाओं को खारिज कर दिया है। ये याचिकाएं आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल के उस आदेश के खिलाफ थीं, जिसमें सैनिकों को विकलांगता पेंशन दी गई थी। भले ही वे फ्रंट लाइन पर तैनात न हों। उनकी पोस्टिंग युद्ध क्षेत्र में न रही हो, फिर भी उन्हें पेंशन मिलेगी। हाईकोर्ट ने कहा कि विकलांगता पेंशन सैनिकों के बलिदान का सम्मान है। यह कोई दान नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि पेंशन सिर्फ इसलिए नहीं रोकी जा सकती क्योंकि विकलांगता शांति वाली जगह पर हुई।
'यह कोई दान नहीं, ये सैनिकों के बलिदान का सम्मान है'
जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की बेंच ने कहा कि यह कोई दान नहीं है। बल्कि यह सैनिकों के बलिदान को स्वीकार करने का एक तरीका है। सैन्य सेवा के दौरान उन्हें जो विकलांगता या बीमारी होती है, यह उसका मुआवजा है। यह राज्य का कर्तव्य है कि वह अपने सैनिकों का ध्यान रखे। ये उनके बलिदानों को स्वीकार करने का एक सही और न्यायपूर्ण तरीका है।
सरकार ने याचिका में क्या कहा था
सरकार ने अपनी याचिका में कोर्ट से कहा था कि इन सैनिकों की मेडिकल कंडीशन सेना में आने की वजह से नहीं हुई है। इसलिए, उन्हें पेंशन नहीं मिलनी चाहिए। अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने सरकार की ओर से कहा कि यह माना जाता है कि सेना में भर्ती होने के समय सैनिक स्वस्थ थे। लेकिन अगर भर्ती के समय कोई दिक्कत नहीं बताई गई, तो इसका मतलब यह नहीं है कि बाद में कोई परेशानी नहीं हो सकती।
विकलांगता पेंशन नहीं रोकी जा सकती- कोर्ट
हालांकि, कोर्ट ने कहा कि सिर्फ इसलिए विकलांगता पेंशन नहीं रोकी जा सकती क्योंकि सैनिक की पोस्टिंग शांति वाली जगह पर थी। कोर्ट ने कहा, 'भले ही सैनिक युद्ध क्षेत्र में न हों, लेकिन उन्हें पता होता है कि खतरा हमेशा मंडराता रहता है। उनके साथी हमेशा खतरे में रहते हैं और वे भी कभी भी खतरे में आ सकते हैं। इस माहौल में वे हमेशा मानसिक और भावनात्मक तनाव में रहते हैं। इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।'
हाईकोर्ट ने फैसले में क्या-क्या कहा जानिए
इसका मतलब है कि सेना में काम करने वाले हर सैनिक को, चाहे वह कहीं भी पोस्टेड हो, विकलांग होने पर पेंशन मिलनी चाहिए। यह उनका हक है और सरकार को इसे देना चाहिए। यह फैसला उन सभी सैनिकों के लिए एक बड़ी राहत है जो अपनी सेवा के दौरान विकलांग हो गए हैं। अब उन्हें पेंशन पाने के लिए लंबी लड़ाई नहीं लड़नी पड़ेगी। कोर्ट ने सरकार को यह भी याद दिलाया कि सैनिकों का ध्यान रखना उनका कर्तव्य है। यह कोई एहसान नहीं है, बल्कि उनका अधिकार है।
सैन्य जवानों के लिए बड़ी जीत
यह फैसला सेना के जवानों के लिए एक बड़ी जीत है। इससे उन्हें यह भरोसा मिलेगा कि सरकार उनके बलिदानों को समझती है और उनका सम्मान करती है। यह फैसला उन लोगों के लिए भी एक सबक है जो सोचते हैं कि सेना में काम करना आसान है। सेना के जवान हमेशा खतरे में रहते हैं, चाहे वे कहीं भी पोस्टेड हों। हमें उनके बलिदानों का सम्मान करना चाहिए और उनका ध्यान रखना चाहिए। यह फैसला सैनिकों के प्रति सम्मान और समर्थन का प्रतीक है।
'यह कोई दान नहीं, ये सैनिकों के बलिदान का सम्मान है'
जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की बेंच ने कहा कि यह कोई दान नहीं है। बल्कि यह सैनिकों के बलिदान को स्वीकार करने का एक तरीका है। सैन्य सेवा के दौरान उन्हें जो विकलांगता या बीमारी होती है, यह उसका मुआवजा है। यह राज्य का कर्तव्य है कि वह अपने सैनिकों का ध्यान रखे। ये उनके बलिदानों को स्वीकार करने का एक सही और न्यायपूर्ण तरीका है।
सरकार ने याचिका में क्या कहा था
सरकार ने अपनी याचिका में कोर्ट से कहा था कि इन सैनिकों की मेडिकल कंडीशन सेना में आने की वजह से नहीं हुई है। इसलिए, उन्हें पेंशन नहीं मिलनी चाहिए। अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने सरकार की ओर से कहा कि यह माना जाता है कि सेना में भर्ती होने के समय सैनिक स्वस्थ थे। लेकिन अगर भर्ती के समय कोई दिक्कत नहीं बताई गई, तो इसका मतलब यह नहीं है कि बाद में कोई परेशानी नहीं हो सकती।
विकलांगता पेंशन नहीं रोकी जा सकती- कोर्ट
हालांकि, कोर्ट ने कहा कि सिर्फ इसलिए विकलांगता पेंशन नहीं रोकी जा सकती क्योंकि सैनिक की पोस्टिंग शांति वाली जगह पर थी। कोर्ट ने कहा, 'भले ही सैनिक युद्ध क्षेत्र में न हों, लेकिन उन्हें पता होता है कि खतरा हमेशा मंडराता रहता है। उनके साथी हमेशा खतरे में रहते हैं और वे भी कभी भी खतरे में आ सकते हैं। इस माहौल में वे हमेशा मानसिक और भावनात्मक तनाव में रहते हैं। इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।'
हाईकोर्ट ने फैसले में क्या-क्या कहा जानिए
इसका मतलब है कि सेना में काम करने वाले हर सैनिक को, चाहे वह कहीं भी पोस्टेड हो, विकलांग होने पर पेंशन मिलनी चाहिए। यह उनका हक है और सरकार को इसे देना चाहिए। यह फैसला उन सभी सैनिकों के लिए एक बड़ी राहत है जो अपनी सेवा के दौरान विकलांग हो गए हैं। अब उन्हें पेंशन पाने के लिए लंबी लड़ाई नहीं लड़नी पड़ेगी। कोर्ट ने सरकार को यह भी याद दिलाया कि सैनिकों का ध्यान रखना उनका कर्तव्य है। यह कोई एहसान नहीं है, बल्कि उनका अधिकार है।
सैन्य जवानों के लिए बड़ी जीत
यह फैसला सेना के जवानों के लिए एक बड़ी जीत है। इससे उन्हें यह भरोसा मिलेगा कि सरकार उनके बलिदानों को समझती है और उनका सम्मान करती है। यह फैसला उन लोगों के लिए भी एक सबक है जो सोचते हैं कि सेना में काम करना आसान है। सेना के जवान हमेशा खतरे में रहते हैं, चाहे वे कहीं भी पोस्टेड हों। हमें उनके बलिदानों का सम्मान करना चाहिए और उनका ध्यान रखना चाहिए। यह फैसला सैनिकों के प्रति सम्मान और समर्थन का प्रतीक है।
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