कुछ साल पहले जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेपाल के मशहूर मुक्तिनाथ मंदिर पहुंचे थे तो ये महज एक धार्मिक यात्रा नहीं थी बल्कि दोनों देशों के संस्कृति, इतिहास और आस्था के ताने बाने में बंधे वो संबंध थे, जो वक्त के साथ और गहरे होते चले गए। मुक्तिनाथ से पहले काग्बेनी का इलाका समुद्र तल से 2,800 की ऊंचाई पर है। इस इलाके में दूधीली रोशनी और दो नदियों का संगम कुदरत की अनोखी तस्वीर पेश करते हैं। यहां पहाड़ियों के बीचों बीच नदी के किनारे खड़े होने पर दो नदियों के संगम की कलकल इतनी तेज़ है जो कुछ क्षणों के लिए जैसे वक्त को ही रोक देती है।
काली गंडकी का धूसरपन और झोंग नदी का मटमैलापन आपस में मिलते हुए देखते हुए आप वहीं ठहर जाते हैं। इस नजारे से पलके उठाएंगे, तो एक बार को चौंक कर सोचेंगे कि कहीं आप भारत के किसी दक्षिण राज्य में तो नहीं क्योंकि यहां अपनों का श्राद्ध करने के लिए भारतीय लोग हर रोज दिख जाएंगे। दरअसल संगम की ये जगह हिंदुओं के लिए अपने पूर्वजों के अंतिम संस्कार के लिए जाने जाती है। जीवन की धार में छूटे हुए लोगों की याद मन और आंखों में बसे पनीलेपन के साथ वो यहां उन्हें याद करते हैं। मुक्तिनाथ की यात्रा अमूमन यहीं से शुरू होती है। यहां ऐसे कई भारतीय परिवार अपनों को याद करते मिल जाएंगे।
काशी और गया जैसा ही अनुभवनेपाल और भारत को आस्था से जोड़ने वाली ये एक ऐसी जगह है, जहां देश की सीमाएं खत्म हो जाती हैं। बचती है तो परंपरा। ऐसा लगेगा कि ये काशी और गया जैसी ही कोई जगह है। अन्नपूर्णा सर्किट ट्रैक के प्रमुख पड़ावों में से एक इस जगह भारत के ज्यादातर वो टूरिस्ट और श्रद्धालू रूकते हैं जो कि मुक्तिनाथ के दर्शन के लिए सफर में होते हैं। कागबेनी से अपर मुस्तांग के सुदूर इलाके तक पहुँचा जा सकता है। मुक्तिनाथ मंदिर के लिए अनगिनत सी लगने वाली सीढ़ियों से पहले एक छोटा सा रास्ता पैदल तय करना होता है। इस छोटी सी दूरी में प्रकृति के नजारों के साथ जो बात ध्यान देने लायक है वो है लोकल रेस्टोरेंट में दुनिया के हर कोने का जायके के साथ साथ इनके अनोखे नाम भी खींचते हैं।
भारत से ज्यादातर आते हैं हिंदूबॉब मार्ले से लेकर मोनालिसा तक,सब यहां दिख जाएंगे। वहां जैसे हम आगे बढ़े तो एक भारतीय महिला हमारे पास आकर बोली कि आप मेरी ओर से ये पैसे मंदिर में दान कर दीजिएगा। भारत में किसी ने भेजे हैं। ऊपर नजारा भारत के ही किसी तीर्थ स्थल जैसा ही है। आसमान के बादलों को छूती हुई सीढ़ियां दिखती हैं। सीढ़ियों पर कुछ कदम चलते और कुछ कदम ठहरते लोग बाग हैं। ज्यादातर हिंदू हैं और भारत से यहां दर्शन के लिए आते हैं।
108 कुंडों का जल छिड़कते हैं लोगऊपर पहुंच कर और भव्य दरवाजे को देखकर सारी थकान दूर हो जाती है। यहां 108 कुंड भी बने हैं, जिसके जल को अपने ऊपर छिड़कना लोग नहीं भूलते। स्थानीय लोगों के जह़न में पीएम मोदी की साल 2018 में यहां की यात्रा की याद आज तक ताज़ा है,उस वक्त पीएम मोदी ने यहां विधिवत तौर पर पूजा पाठ किया था। कूटनीति में इस तरह के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों की अपनी जगह है। भारत और नेपाल के बीच ऐसी ढेर सारी कड़ियां हैं, जो राजनीति और समाज को एक धागे में पिरोती हैं।
क्लाइमेच चेंज का सेब की उपज पर असर हालांकि क्लाइमेट चेंज किस तरह से दुनिया के अलग अलग इलाकों पर असर डाल रहा है। इसका एक उदाहरण मस्तंग के मार्फा गांव से ही समझा जा सकता है। यहां की खूबसूरत गलियों में मकानों के बाहर बैठे बुजुर्ग एक संतुष्ट जीवन जीए जाने की गवाही देते हैं। वो कहते हैं कि हाल के सालों में क्लाइमेट चेंज ने यहां की सेब की खेती को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। ट्रैकिंग उद्योग से जुड़े इस गांव पर जलवाय बदलाव का असर साफ तौर पर देखा जा सकता है।
जून की गर्मी में भी ठंडी हवाओं का झोंकासाल दर साल बढ़ते तापमान ने स्नोफॉल को कम किया है, जिसकी वजह से सेब की उपज चुनौतियों का सामना कर रही है। हालांकि लोग खेती के प्रयोगधर्मी तरीके इस्तेमाल कर इस चुनौती से निपटने की कोशिश भी कर रहे हैं । तिब्बती समुदाय से संबंध रखने वाले यहां के ज्यादातर लोग जीवन को लेकर अपने जीवंत रूख के लिए जाने जाते हैं, उन्हें उम्मीद है कि वो इस समस्या से भी पार पाएंगे। जून की गर्मी में भी बेहद ठंडी हवाओं के बीच उनकी इस मुस्कान और जीवन दर्शन के पीछे यहां की कुदरती खूबसूरती है, जो जीवन की आपाधापी में एक सुकून भरा अहसास देती है।
काली गंडकी का धूसरपन और झोंग नदी का मटमैलापन आपस में मिलते हुए देखते हुए आप वहीं ठहर जाते हैं। इस नजारे से पलके उठाएंगे, तो एक बार को चौंक कर सोचेंगे कि कहीं आप भारत के किसी दक्षिण राज्य में तो नहीं क्योंकि यहां अपनों का श्राद्ध करने के लिए भारतीय लोग हर रोज दिख जाएंगे। दरअसल संगम की ये जगह हिंदुओं के लिए अपने पूर्वजों के अंतिम संस्कार के लिए जाने जाती है। जीवन की धार में छूटे हुए लोगों की याद मन और आंखों में बसे पनीलेपन के साथ वो यहां उन्हें याद करते हैं। मुक्तिनाथ की यात्रा अमूमन यहीं से शुरू होती है। यहां ऐसे कई भारतीय परिवार अपनों को याद करते मिल जाएंगे।

भारत से ज्यादातर आते हैं हिंदूबॉब मार्ले से लेकर मोनालिसा तक,सब यहां दिख जाएंगे। वहां जैसे हम आगे बढ़े तो एक भारतीय महिला हमारे पास आकर बोली कि आप मेरी ओर से ये पैसे मंदिर में दान कर दीजिएगा। भारत में किसी ने भेजे हैं। ऊपर नजारा भारत के ही किसी तीर्थ स्थल जैसा ही है। आसमान के बादलों को छूती हुई सीढ़ियां दिखती हैं। सीढ़ियों पर कुछ कदम चलते और कुछ कदम ठहरते लोग बाग हैं। ज्यादातर हिंदू हैं और भारत से यहां दर्शन के लिए आते हैं।
108 कुंडों का जल छिड़कते हैं लोगऊपर पहुंच कर और भव्य दरवाजे को देखकर सारी थकान दूर हो जाती है। यहां 108 कुंड भी बने हैं, जिसके जल को अपने ऊपर छिड़कना लोग नहीं भूलते। स्थानीय लोगों के जह़न में पीएम मोदी की साल 2018 में यहां की यात्रा की याद आज तक ताज़ा है,उस वक्त पीएम मोदी ने यहां विधिवत तौर पर पूजा पाठ किया था। कूटनीति में इस तरह के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों की अपनी जगह है। भारत और नेपाल के बीच ऐसी ढेर सारी कड़ियां हैं, जो राजनीति और समाज को एक धागे में पिरोती हैं।
क्लाइमेच चेंज का सेब की उपज पर असर हालांकि क्लाइमेट चेंज किस तरह से दुनिया के अलग अलग इलाकों पर असर डाल रहा है। इसका एक उदाहरण मस्तंग के मार्फा गांव से ही समझा जा सकता है। यहां की खूबसूरत गलियों में मकानों के बाहर बैठे बुजुर्ग एक संतुष्ट जीवन जीए जाने की गवाही देते हैं। वो कहते हैं कि हाल के सालों में क्लाइमेट चेंज ने यहां की सेब की खेती को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। ट्रैकिंग उद्योग से जुड़े इस गांव पर जलवाय बदलाव का असर साफ तौर पर देखा जा सकता है।

जून की गर्मी में भी ठंडी हवाओं का झोंकासाल दर साल बढ़ते तापमान ने स्नोफॉल को कम किया है, जिसकी वजह से सेब की उपज चुनौतियों का सामना कर रही है। हालांकि लोग खेती के प्रयोगधर्मी तरीके इस्तेमाल कर इस चुनौती से निपटने की कोशिश भी कर रहे हैं । तिब्बती समुदाय से संबंध रखने वाले यहां के ज्यादातर लोग जीवन को लेकर अपने जीवंत रूख के लिए जाने जाते हैं, उन्हें उम्मीद है कि वो इस समस्या से भी पार पाएंगे। जून की गर्मी में भी बेहद ठंडी हवाओं के बीच उनकी इस मुस्कान और जीवन दर्शन के पीछे यहां की कुदरती खूबसूरती है, जो जीवन की आपाधापी में एक सुकून भरा अहसास देती है।
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