नई दिल्ली: ईरान की संसद ने एक बड़ा कदम उठाया है। अमेरिका और इजरायल के साथ बढ़ते तनाव के बीच संसद ने होर्मुज जलडमरूमध्य (Strait of Hormuz) को बंद करने का प्रस्ताव पारित किया है। यह जलडमरूमध्य दुनिया के तेल और गैस की सप्लाई के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। अमेरिकी हवाई हमलों के बाद यह फैसला लिया गया। अब इस प्रस्ताव को ईरान की सुप्रीम नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल की मंजूरी का इंतजार है। यह काउंसिल ऐसे मामलों पर देश की सबसे बड़ी संस्था है।
होर्मुज जलडमरूमध्य ईरान और खाड़ी के अरब देशों के बीच स्थित है। यह दुनिया के सबसे संवेदनशील ऊर्जा मार्गों में से एक है। हर दिन दुनिया के तेल और गैस की सप्लाई का लगभग 20% हिस्सा इस 33 किलोमीटर चौड़े रास्ते से होकर गुजरता है। इसमें सिर्फ 3 किलोमीटर चौड़े शिपिंग लेन हैं। इसलिए, यह जगह वैश्विक बाजारों के लिए संवेदनशील है।
सऊदी अरब, इराक, यूएई, कतर, ईरान और कुवैत जैसे बड़े निर्यातक कच्चे तेल को भेजने के लिए इस जलडमरूमध्य पर निर्भर हैं। पहले, पश्चिम को किसी भी रुकावट से सबसे ज्यादा खतरा था। लेकिन, आज चीन और एशिया को इससे सबसे ज्यादा नुकसान होगा।
भारत पर क्यों नहीं होगा असर?
भारत इस जलडमरूमध्य से रोज लगभग 20 लाख बैरल कच्चा तेल आयात करता है। यह भारत के कुल 55 लाख बैरल प्रतिदिन के आयात का हिस्सा है। होर्मुज के बंद होने का भारत पर ज्यादा असर नहीं होगा। भारत ने रूस, अमेरिका और ब्राजील से तेल लेकर अपने स्रोतों को विविधतापूर्ण बनाया है। इससे किसी भी संभावित रुकावट का असर कम होगा।
केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने इसे लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट किया। उन्होंने कहा, 'हम पिछले दो हफ्ते से मध्य पूर्व में विकसित भू-राजनीतिक स्थिति पर बारीकी से नजर रख रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में हमने पिछले कुछ वर्षों में अपनी सप्लाई में विविधता बनाई है। अब हमारी आपूर्ति का बड़ा हिस्सा होर्मुज जलडमरूमध्य से होकर नहीं आता है। हमारी तेल मार्केटिंग कंपनियों के पास कई सप्ताह की आपूर्ति है। उन्हें कई मार्गों से ऊर्जा आपूर्ति प्राप्त होती रहती है। हम अपने नागरिकों को ईंधन की सप्लाई की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएंगे।'
जानकारों के अनुसार, भारत की गैस सप्लाई भी सुरक्षित है। कतर, जो भारत का सबसे बड़ा सप्लायर है, होर्मुज जलडमरूमध्य से नहीं गुजरता है। ऑस्ट्रेलिया, रूस और अमेरिका से आने वाले अन्य LNG आयात भी सुरक्षित हैं।
'टैंकर युद्धों' की यादें हो गई हैं ताजा
फिर भी ऊर्जा बाजार में तनाव बना हुआ है। जलडमरूमध्य को बंद करने की आशंका ने 1980 के दशक के 'टैंकर युद्धों' की यादें ताजा कर दी हैं। उस समय, ईरान और इराक ने तेल टैंकरों को निशाना बनाया था। इससे अमेरिकी नौसेना भी इस संघर्ष में शामिल हो गई थी। 1987 में अमेरिका ने 'ऑपरेशन अर्नेस्ट विल' चलाया था। इसके तहत अमेरिकी युद्धपोतों ने टैंकरों को सुरक्षा दी थी। यह मिशन 1988 में दुखद रूप से समाप्त हुआ जब यूएसएस विन्सेन्स ने एक ईरानी एयरलाइनर को मार गिराया, जिसमें 290 लोग मारे गए थे।
हाल ही में 2023 में तनाव फिर से बढ़ गया था। ईरान ने ओमान की खाड़ी में शेवरॉन के की ओर से चार्टर्ड तेल टैंकर 'एडवांटेज स्वीट' को जब्त कर लिया था। इस जहाज को एक साल से अधिक समय तक रखा गया था, जिसके बाद उसे छोड़ा गया।
ईरान की संसद के इस कदम से वैश्विक ऊर्जा बाजार में चिंता बढ़ गई है। अगर होर्मुज जलडमरूमध्य बंद हो जाता है तो दुनिया भर में तेल और गैस की सप्लाई में भारी कमी आ सकती है। इससे ऊर्जा की कीमतें बढ़ सकती हैं और अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ सकता है। भारत ने अपने ऊर्जा स्रोतों को विविधतापूर्ण बनाकर इस खतरे को कम करने की कोशिश की है। लेकिन, भारत फिर भी सतर्क है।
होर्मुज जलडमरूमध्य ईरान और खाड़ी के अरब देशों के बीच स्थित है। यह दुनिया के सबसे संवेदनशील ऊर्जा मार्गों में से एक है। हर दिन दुनिया के तेल और गैस की सप्लाई का लगभग 20% हिस्सा इस 33 किलोमीटर चौड़े रास्ते से होकर गुजरता है। इसमें सिर्फ 3 किलोमीटर चौड़े शिपिंग लेन हैं। इसलिए, यह जगह वैश्विक बाजारों के लिए संवेदनशील है।
सऊदी अरब, इराक, यूएई, कतर, ईरान और कुवैत जैसे बड़े निर्यातक कच्चे तेल को भेजने के लिए इस जलडमरूमध्य पर निर्भर हैं। पहले, पश्चिम को किसी भी रुकावट से सबसे ज्यादा खतरा था। लेकिन, आज चीन और एशिया को इससे सबसे ज्यादा नुकसान होगा।
भारत पर क्यों नहीं होगा असर?
भारत इस जलडमरूमध्य से रोज लगभग 20 लाख बैरल कच्चा तेल आयात करता है। यह भारत के कुल 55 लाख बैरल प्रतिदिन के आयात का हिस्सा है। होर्मुज के बंद होने का भारत पर ज्यादा असर नहीं होगा। भारत ने रूस, अमेरिका और ब्राजील से तेल लेकर अपने स्रोतों को विविधतापूर्ण बनाया है। इससे किसी भी संभावित रुकावट का असर कम होगा।
केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने इसे लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट किया। उन्होंने कहा, 'हम पिछले दो हफ्ते से मध्य पूर्व में विकसित भू-राजनीतिक स्थिति पर बारीकी से नजर रख रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में हमने पिछले कुछ वर्षों में अपनी सप्लाई में विविधता बनाई है। अब हमारी आपूर्ति का बड़ा हिस्सा होर्मुज जलडमरूमध्य से होकर नहीं आता है। हमारी तेल मार्केटिंग कंपनियों के पास कई सप्ताह की आपूर्ति है। उन्हें कई मार्गों से ऊर्जा आपूर्ति प्राप्त होती रहती है। हम अपने नागरिकों को ईंधन की सप्लाई की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएंगे।'
जानकारों के अनुसार, भारत की गैस सप्लाई भी सुरक्षित है। कतर, जो भारत का सबसे बड़ा सप्लायर है, होर्मुज जलडमरूमध्य से नहीं गुजरता है। ऑस्ट्रेलिया, रूस और अमेरिका से आने वाले अन्य LNG आयात भी सुरक्षित हैं।
'टैंकर युद्धों' की यादें हो गई हैं ताजा
फिर भी ऊर्जा बाजार में तनाव बना हुआ है। जलडमरूमध्य को बंद करने की आशंका ने 1980 के दशक के 'टैंकर युद्धों' की यादें ताजा कर दी हैं। उस समय, ईरान और इराक ने तेल टैंकरों को निशाना बनाया था। इससे अमेरिकी नौसेना भी इस संघर्ष में शामिल हो गई थी। 1987 में अमेरिका ने 'ऑपरेशन अर्नेस्ट विल' चलाया था। इसके तहत अमेरिकी युद्धपोतों ने टैंकरों को सुरक्षा दी थी। यह मिशन 1988 में दुखद रूप से समाप्त हुआ जब यूएसएस विन्सेन्स ने एक ईरानी एयरलाइनर को मार गिराया, जिसमें 290 लोग मारे गए थे।
हाल ही में 2023 में तनाव फिर से बढ़ गया था। ईरान ने ओमान की खाड़ी में शेवरॉन के की ओर से चार्टर्ड तेल टैंकर 'एडवांटेज स्वीट' को जब्त कर लिया था। इस जहाज को एक साल से अधिक समय तक रखा गया था, जिसके बाद उसे छोड़ा गया।
ईरान की संसद के इस कदम से वैश्विक ऊर्जा बाजार में चिंता बढ़ गई है। अगर होर्मुज जलडमरूमध्य बंद हो जाता है तो दुनिया भर में तेल और गैस की सप्लाई में भारी कमी आ सकती है। इससे ऊर्जा की कीमतें बढ़ सकती हैं और अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ सकता है। भारत ने अपने ऊर्जा स्रोतों को विविधतापूर्ण बनाकर इस खतरे को कम करने की कोशिश की है। लेकिन, भारत फिर भी सतर्क है।
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