लेखक: करण कुमार
टेक्नॉलजी में तेजी से बदलाव के कारण अब इनकी खास समझ रखने वाले विशेषज्ञों की जरूरत बढ़ गई है। इन तकनीकों में सबसे बड़ा बदलाव है आर्टिफिशल इंटेलिजेंस। AI का मतलब है ऐसी मशीनें, जो इंसानों की तरह सोच सकें और फैसले ले सकें। अब AI का इस्तेमाल अस्पतालों से लेकर बैंकों तक में हो रहा है।
पूर्वाग्रह का संकट: AI पर भरोसा बढ़ता जा रहा है, लेकिन इससे जुड़ी सबसे बड़ी परेशानी है कि आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के परिणाम में भेदभाव हो सकता है। AI को उस डेटा के आधार पर प्रशिक्षित किया जाता है, जिसका उपयोग उसमें किया गया हो। अगर उस डेटा में पहले से ही सामाजिक पूर्वाग्रह मौजूद हैं या उसमें कोई महत्वपूर्ण जानकारी गायब है, तो AI भी उन्हीं पूर्वाग्रहों के साथ निर्णय देगा। कई मामलों में उन्हें और बढ़ा भी सकता है।
पारदर्शिता की कमी: इसके अलावा, कई AI मॉडल अपारदर्शी होते हैं यानी वे कैसे काम करते हैं, यह स्पष्ट नहीं होता। इसे ही तकनीकी भाषा में Black Box समस्या कहा जाता है। इस वजह से यह समझना मुश्किल हो जाता है कि AI किसी खास निष्कर्ष या निर्णय तक कैसे पहुंचा। इससे Accountability प्रभावित होती है। AI-generated evidence की कानूनी विश्वसनीयता पर सवाल हैं। एक ऐसे मामले के बारे में विचार कीजिए, जहां गवाह AI आधारित सबूत के एक जटिल एल्गोरिदम पर भरोसा कर रहा है। अगर हमें AI पर भरोसा करना है, तो यह जरूरी है कि उसे सही और साफ डेटा मिले और उसके काम करने की प्रक्रिया समझ में आए। साथ ही, यह पता लगाया जा सके कि उसने कोई खास नतीजा क्यों और कैसे निकाला।
सबूतों पर उलझन: AI से जुड़े साक्ष्य यानी सबूतों को कानून में पूरी तरह स्वीकार करना आसान नहीं है। अदालतें पहले भी इलेक्ट्रॉनिक सबूतों को लेकर उलझन में रही हैं, लेकिन AI के मामले में परेशानी और भी बढ़ जाती है। इसकी वजह है - Black Box समस्या, अस्पष्टता और पक्षपातपूर्ण एल्गोरिदम। देश का नया कानून ‘भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA)’ डिजिटल सबूतों के लिए एक नया और आधुनिक ढांचा लाता है।
नए कानून: BSA 2023 आर्टिफिशल इंटेलिजेंस आधारित सबूतों के मामले में समझ बढ़ाता है। धारा 2(1)(d) में ‘दस्तावेज’ की परिभाषा को व्यापक बनाया गया है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रेकॉर्ड भी शामिल हैं यानी AI आउटपुट भी। धारा 61 कहती है कि किसी भी इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रेकॉर्ड को सिर्फ इसलिए साक्ष्य से बाहर नहीं किया जा सकता क्योंकि वह इलेक्ट्रॉनिक रूप में बनाया या भेजा गया था। वहीं, धारा 63 बेहद महत्वपूर्ण अधिनियम है, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक रेकॉर्ड की स्वीकार्यता के बारे में बात की गई है। इस नए ढांचे का लक्ष्य तकनीक और विश्वसनीयता के बीच संतुलन बनाना है।
असली-नकली का अंतर: कानूनी मामलों में AI से उत्पन्न नतीजों और इलेक्ट्रॉनिक रेकॉर्ड्स के साथ काम करते समय वकीलों और Digital Forensic Experts को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। डिजिटल डेटा इतना विशाल और इतने सारे सोर्स से आता है कि उसे जुटाना व उसका विश्लेषण करना जटिल है। डीपफेक और Digital Manipulation की वजह से यह और भी जरूरी है कि नकली व असली सबूतों के बीच अंतर करने के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जाए। एक्सपर्ट कुछ फॉरेंसिक सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करते भी हैं।
काम चल रहा: वॉशिंगटन का एक चर्चित केस है, जिसमें अदालत ने AI से edited विडियो सबूत को नकार दिया। कोर्ट ने माना कि विडियो में कुछ नई चीजें जोड़ी गई थीं। यही AI की चुनौती है। भारत में गृह मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय फरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय जैसी संस्थाएं साइबर अपराध, AI से जुड़ी चुनौतियों पर काम कर रही हैं।
(लेखक गांधीनगर स्थित राष्ट्रीय फॉरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय के छात्र हैं)
टेक्नॉलजी में तेजी से बदलाव के कारण अब इनकी खास समझ रखने वाले विशेषज्ञों की जरूरत बढ़ गई है। इन तकनीकों में सबसे बड़ा बदलाव है आर्टिफिशल इंटेलिजेंस। AI का मतलब है ऐसी मशीनें, जो इंसानों की तरह सोच सकें और फैसले ले सकें। अब AI का इस्तेमाल अस्पतालों से लेकर बैंकों तक में हो रहा है।
पूर्वाग्रह का संकट: AI पर भरोसा बढ़ता जा रहा है, लेकिन इससे जुड़ी सबसे बड़ी परेशानी है कि आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के परिणाम में भेदभाव हो सकता है। AI को उस डेटा के आधार पर प्रशिक्षित किया जाता है, जिसका उपयोग उसमें किया गया हो। अगर उस डेटा में पहले से ही सामाजिक पूर्वाग्रह मौजूद हैं या उसमें कोई महत्वपूर्ण जानकारी गायब है, तो AI भी उन्हीं पूर्वाग्रहों के साथ निर्णय देगा। कई मामलों में उन्हें और बढ़ा भी सकता है।
पारदर्शिता की कमी: इसके अलावा, कई AI मॉडल अपारदर्शी होते हैं यानी वे कैसे काम करते हैं, यह स्पष्ट नहीं होता। इसे ही तकनीकी भाषा में Black Box समस्या कहा जाता है। इस वजह से यह समझना मुश्किल हो जाता है कि AI किसी खास निष्कर्ष या निर्णय तक कैसे पहुंचा। इससे Accountability प्रभावित होती है। AI-generated evidence की कानूनी विश्वसनीयता पर सवाल हैं। एक ऐसे मामले के बारे में विचार कीजिए, जहां गवाह AI आधारित सबूत के एक जटिल एल्गोरिदम पर भरोसा कर रहा है। अगर हमें AI पर भरोसा करना है, तो यह जरूरी है कि उसे सही और साफ डेटा मिले और उसके काम करने की प्रक्रिया समझ में आए। साथ ही, यह पता लगाया जा सके कि उसने कोई खास नतीजा क्यों और कैसे निकाला।
सबूतों पर उलझन: AI से जुड़े साक्ष्य यानी सबूतों को कानून में पूरी तरह स्वीकार करना आसान नहीं है। अदालतें पहले भी इलेक्ट्रॉनिक सबूतों को लेकर उलझन में रही हैं, लेकिन AI के मामले में परेशानी और भी बढ़ जाती है। इसकी वजह है - Black Box समस्या, अस्पष्टता और पक्षपातपूर्ण एल्गोरिदम। देश का नया कानून ‘भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA)’ डिजिटल सबूतों के लिए एक नया और आधुनिक ढांचा लाता है।
नए कानून: BSA 2023 आर्टिफिशल इंटेलिजेंस आधारित सबूतों के मामले में समझ बढ़ाता है। धारा 2(1)(d) में ‘दस्तावेज’ की परिभाषा को व्यापक बनाया गया है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रेकॉर्ड भी शामिल हैं यानी AI आउटपुट भी। धारा 61 कहती है कि किसी भी इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रेकॉर्ड को सिर्फ इसलिए साक्ष्य से बाहर नहीं किया जा सकता क्योंकि वह इलेक्ट्रॉनिक रूप में बनाया या भेजा गया था। वहीं, धारा 63 बेहद महत्वपूर्ण अधिनियम है, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक रेकॉर्ड की स्वीकार्यता के बारे में बात की गई है। इस नए ढांचे का लक्ष्य तकनीक और विश्वसनीयता के बीच संतुलन बनाना है।
असली-नकली का अंतर: कानूनी मामलों में AI से उत्पन्न नतीजों और इलेक्ट्रॉनिक रेकॉर्ड्स के साथ काम करते समय वकीलों और Digital Forensic Experts को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। डिजिटल डेटा इतना विशाल और इतने सारे सोर्स से आता है कि उसे जुटाना व उसका विश्लेषण करना जटिल है। डीपफेक और Digital Manipulation की वजह से यह और भी जरूरी है कि नकली व असली सबूतों के बीच अंतर करने के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जाए। एक्सपर्ट कुछ फॉरेंसिक सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करते भी हैं।
काम चल रहा: वॉशिंगटन का एक चर्चित केस है, जिसमें अदालत ने AI से edited विडियो सबूत को नकार दिया। कोर्ट ने माना कि विडियो में कुछ नई चीजें जोड़ी गई थीं। यही AI की चुनौती है। भारत में गृह मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय फरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय जैसी संस्थाएं साइबर अपराध, AI से जुड़ी चुनौतियों पर काम कर रही हैं।
(लेखक गांधीनगर स्थित राष्ट्रीय फॉरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय के छात्र हैं)
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