नई दिल्ली: चूड़िया, मनके और मिट्टी के बर्तन...ऐसी ही कुछ चीजें पाकिस्तान की सीमा के पास जोधपुर में मिली हैं। ये चीजें गवाही दे रही हैं भारत-पाकिस्तान की सभ्यता की सांझी विरासत के बारे में। हाल ही में भारतीय पुरातत्वविदों ने ऐसे ही एक नए स्थल को खोज निकाला है। जानते हैं इस मिले हुए हड़प्पा स्थल में क्या खास चीजें मिली हैं। इनकी अहमियत क्या है?
राताड़िया री डेरी में मिला यह 'खजाना'
भारतीय पुरातत्वविदों को राजस्थान के जैसलमेर जिले में रताड़िया री डेरी में 4500 साल पुराने हड़प्पाकालीन स्थल के साक्ष्य मिले हैं। यह जगह रामगढ़ तहसील से 60 किलोमीटर दूर है, जबकि पाकिस्तान सीमा के पास सादेवाला गांव से महत 17 किलोमीटर दूर है।
किसने खोजा यह स्थल, जान लीजिए
यह खोज राजस्थान यूनिवर्सिटी में इतिहास और भारतीय संस्कृति विभाग के एक रिसर्चर दिलीप कुमार सैनी, इतिहासकार पार्थ जगानी, राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर के प्रोफेसर जीवन सिंह खर्कवाल और राजस्थान यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. तामेघ पंवार और डॉ. रवींद्र सिंह जाम और रामगढ़ के प्रदीप कुमार गर्ग ने की है।
थार के रेगिस्तान में पहली बार मिला ऐसा खजाना
थार के रेगिस्तान में पहली बार कोई पुरातात्विक स्थल मिला है। यह खोज इंडियन जर्नल ऑफ साइंस में छपी है। यहां कुछ पुरानी चीजें मिली हैं। ये चीजें लाल और गेहुएं रंग के मिट्टी के बर्तन हैं। इनमें कटोरे, सुराही, कप और छेद वाले जार शामिल हैं। ये मिट्टी के बर्तन हाथ से बने हैं। इन पर ज्यामितीय आकृतियां बनी हुई हैं। कुछ पत्थर के ब्लेड भी मिले हैं, जो 8-10 cm लंबे हैं।
मिट्टी और शंख की चूड़ियां भी मिली हैं
पुरातत्वविदों के मुताबिक, रताड़िया री डेरी से जो भी चीजें मिली हैं, उसके ब्लेड रोहरी (पाकिस्तान) से लाए गए चर्ट पत्थर से बने हैं। मिट्टी और शंख से बनी चूड़ियां भी मिली हैं। कुछ तिकोने, गोल और इडली जैसे आकार के टेराकोटा केक भी मिले हैं। टेराकोटा केक मतलब मिट्टी से बनी हुई पकी हुई चीजों से है।
पत्थर की चक्कियां और ईंटे भी मिलीं
इस स्थल से पत्थर की चक्कियां भी मिली हैं। शायद इनका इस्तेमाल कुछ पीसने या रगड़ने के लिए होता था। कुछ वेज (wedge) आकार की ईंटें भी मिली हैं। इससे लगता है कि वहां गोल इमारतें या भट्ठियां रही होंगी। कुछ आयताकार ईंटें भी मिली हैं। ये ईंटें हड़प्पा सभ्यता की शहरी योजना की याद दिलाती हैं। एक भट्टी भी मिली है, जिसके बीच में एक खंभा है। ऐसी भट्टियां पहले कंमेर (गुजरात) और मोहनजोदड़ो (पाकिस्तान) में भी मिली हैं। कुछ पुरानी दीवारों के अवशेष भी मिले हैं। इससे पता चलता है कि वहां व्यवस्थित तरीके से निर्माण किया गया था।
क्यों मशहूर है हड़प्पा सभ्यता, जान लीजिए
हड़प्पा सभ्यता को भारत की सबसे विकसित सभ्यता माना जाता है। पहले इसे सिंधु घाटी सभ्यता नाम दिया गया था, जो सिंधु नदी पर आधारित था। बाद हड़प्पा स्थल के नाम पर इसे हड़प्पा सभ्यता नाम दे दिया गया। यह सभ्यता पूरी तरह शहरी सभ्यता थी। जिसमें चौड़ी-चौड़ी सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। घरों और सड़कों के किनारे पानी निकासी की व्यवस्था भी हुआ करती थी। यह खासियत उस वक्त दुनिया की किसी भी सभ्यता की विरासत में नहीं मिली हैं।
चूड़ियों ने बताया कि कैसे नष्ट हो गई थी हड़प्पा सभ्यता
सिंधु घाटी सभ्यता का पतन संभवतः पर्यावरणीय, भौगोलिक, आर्थिक और सामाजिक कारकों से हुआ था। नदियों का सूखना, प्राकृतिक आपदाएँ, व्यापार नेटवर्क में गिरावट और सामाजिक एवं आर्थिक बुनियादी ढांचे की गिरावट ने इस सभ्यता के पतन में भूमिका निभाई थी। अनएकेडमी के अनुसार, हड़प्पा सभ्यता 1300 ईसा पूर्व तक ढह गई थी और समाज 1900 ईसा पूर्व तक पतन की ओर अग्रसर हो गया था। सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता 1800 ईसा पूर्व के आसपास खत्म होनी शुरू हो गई। हड़प्पा सभ्यता उस रोमानियाई समय की सबसे सुंदर सभ्यता थी जहां मूर्तियों, शहरों, जल निकासी प्रणालियों का निर्माण सबसे मशहूर था। कुछ इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता का अंत मनुष्यों द्वारा नहीं बल्कि भूकंप, बाढ़ और महामारी जैसी कुछ प्राकृतिक वजहों से हुआ था। हड़प्पा सभ्यता सिलाई, सार्वजनिक स्नानघर, जलाशयों की एक जटिल प्रणाली के साथ समाप्त हुई थी। कई स्थलों पर बिखरे हुए मनके, चूड़ियां इन बातों की गवाही देती हैं।
राताड़िया री डेरी में मिला यह 'खजाना'
भारतीय पुरातत्वविदों को राजस्थान के जैसलमेर जिले में रताड़िया री डेरी में 4500 साल पुराने हड़प्पाकालीन स्थल के साक्ष्य मिले हैं। यह जगह रामगढ़ तहसील से 60 किलोमीटर दूर है, जबकि पाकिस्तान सीमा के पास सादेवाला गांव से महत 17 किलोमीटर दूर है।

किसने खोजा यह स्थल, जान लीजिए
यह खोज राजस्थान यूनिवर्सिटी में इतिहास और भारतीय संस्कृति विभाग के एक रिसर्चर दिलीप कुमार सैनी, इतिहासकार पार्थ जगानी, राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर के प्रोफेसर जीवन सिंह खर्कवाल और राजस्थान यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. तामेघ पंवार और डॉ. रवींद्र सिंह जाम और रामगढ़ के प्रदीप कुमार गर्ग ने की है।
थार के रेगिस्तान में पहली बार मिला ऐसा खजाना
थार के रेगिस्तान में पहली बार कोई पुरातात्विक स्थल मिला है। यह खोज इंडियन जर्नल ऑफ साइंस में छपी है। यहां कुछ पुरानी चीजें मिली हैं। ये चीजें लाल और गेहुएं रंग के मिट्टी के बर्तन हैं। इनमें कटोरे, सुराही, कप और छेद वाले जार शामिल हैं। ये मिट्टी के बर्तन हाथ से बने हैं। इन पर ज्यामितीय आकृतियां बनी हुई हैं। कुछ पत्थर के ब्लेड भी मिले हैं, जो 8-10 cm लंबे हैं।

मिट्टी और शंख की चूड़ियां भी मिली हैं
पुरातत्वविदों के मुताबिक, रताड़िया री डेरी से जो भी चीजें मिली हैं, उसके ब्लेड रोहरी (पाकिस्तान) से लाए गए चर्ट पत्थर से बने हैं। मिट्टी और शंख से बनी चूड़ियां भी मिली हैं। कुछ तिकोने, गोल और इडली जैसे आकार के टेराकोटा केक भी मिले हैं। टेराकोटा केक मतलब मिट्टी से बनी हुई पकी हुई चीजों से है।
पत्थर की चक्कियां और ईंटे भी मिलीं
इस स्थल से पत्थर की चक्कियां भी मिली हैं। शायद इनका इस्तेमाल कुछ पीसने या रगड़ने के लिए होता था। कुछ वेज (wedge) आकार की ईंटें भी मिली हैं। इससे लगता है कि वहां गोल इमारतें या भट्ठियां रही होंगी। कुछ आयताकार ईंटें भी मिली हैं। ये ईंटें हड़प्पा सभ्यता की शहरी योजना की याद दिलाती हैं। एक भट्टी भी मिली है, जिसके बीच में एक खंभा है। ऐसी भट्टियां पहले कंमेर (गुजरात) और मोहनजोदड़ो (पाकिस्तान) में भी मिली हैं। कुछ पुरानी दीवारों के अवशेष भी मिले हैं। इससे पता चलता है कि वहां व्यवस्थित तरीके से निर्माण किया गया था।
क्यों मशहूर है हड़प्पा सभ्यता, जान लीजिए
हड़प्पा सभ्यता को भारत की सबसे विकसित सभ्यता माना जाता है। पहले इसे सिंधु घाटी सभ्यता नाम दिया गया था, जो सिंधु नदी पर आधारित था। बाद हड़प्पा स्थल के नाम पर इसे हड़प्पा सभ्यता नाम दे दिया गया। यह सभ्यता पूरी तरह शहरी सभ्यता थी। जिसमें चौड़ी-चौड़ी सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। घरों और सड़कों के किनारे पानी निकासी की व्यवस्था भी हुआ करती थी। यह खासियत उस वक्त दुनिया की किसी भी सभ्यता की विरासत में नहीं मिली हैं।
चूड़ियों ने बताया कि कैसे नष्ट हो गई थी हड़प्पा सभ्यता
सिंधु घाटी सभ्यता का पतन संभवतः पर्यावरणीय, भौगोलिक, आर्थिक और सामाजिक कारकों से हुआ था। नदियों का सूखना, प्राकृतिक आपदाएँ, व्यापार नेटवर्क में गिरावट और सामाजिक एवं आर्थिक बुनियादी ढांचे की गिरावट ने इस सभ्यता के पतन में भूमिका निभाई थी। अनएकेडमी के अनुसार, हड़प्पा सभ्यता 1300 ईसा पूर्व तक ढह गई थी और समाज 1900 ईसा पूर्व तक पतन की ओर अग्रसर हो गया था। सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता 1800 ईसा पूर्व के आसपास खत्म होनी शुरू हो गई। हड़प्पा सभ्यता उस रोमानियाई समय की सबसे सुंदर सभ्यता थी जहां मूर्तियों, शहरों, जल निकासी प्रणालियों का निर्माण सबसे मशहूर था। कुछ इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता का अंत मनुष्यों द्वारा नहीं बल्कि भूकंप, बाढ़ और महामारी जैसी कुछ प्राकृतिक वजहों से हुआ था। हड़प्पा सभ्यता सिलाई, सार्वजनिक स्नानघर, जलाशयों की एक जटिल प्रणाली के साथ समाप्त हुई थी। कई स्थलों पर बिखरे हुए मनके, चूड़ियां इन बातों की गवाही देती हैं।
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