नई दिल्ली: भारत-रूस के बीच व्यापारिक रिश्ते और ज्यादा मजबूत हो रहे हैं। अमेरिका के दबाव के बावजूद भारत का रूस से ऊर्जा आयात बढ़ा है। वैश्विक बाजार में प्रतिबंधों और भू-राजनीतिक तनाव के बीच भारत अपनी व्यापार रणनीति में विविधता लाया है। वह ऊर्जा के अलावा कृषि, फार्मास्यूटिकल्स और मैन्युफैक्चर्ड गुड्स जैसे क्षेत्रों पर भी फोकस कर रहा है। रूस भारत की ट्रेड डायवर्सिफिकेशन की रणनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगा है। भारत न केवल रूस से बड़ी मात्रा में तेल खरीद रहा है, बल्कि एक बड़े रक्षा समझौते पर भी बातचीत चल रही है। भारत की रूस से 10,000 करोड़ रुपये के मिसाइलों की खरीद पर चर्चा जारी है। ये उसके S-400 ‘सुदर्शन’ वायु रक्षा प्रणालियों के लिए होंगी। भारतीय वायु सेना इन मिसाइलों को हासिल करने के लिए उत्सुक है ताकि वह अपनी क्षमताओं को और मजबूत कर सके। रक्षा सूत्रों के अनुसार, यह प्रस्ताव 23 अक्टूबर को रक्षा अधिग्रहण परिषद की बैठक में लिया जाएगा। ठीक उसी समय भारत से रूस को होने वाले गैर-ऊर्जा निर्यात में भी लगातार बढ़ोतरी देखी गई है। यह रिश्तों में बड़े बदलाव की ओर इशारा करता है। इससे इस बात का भी संकेत मिलता है कि भारत किसी एक बाजार या वस्तु पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश करने में लगा है। यह कदम ऐसे समय में उठाया जा रहा है जब अमेरिका रूस के साथ कुछ ऊर्जा लेनदेन को प्रतिबंधित करने की कोशिश कर रहा है।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया था कि प्रधानमंत्री मोदी ने उनसे रूसी तेल की खरीद कम करने का वादा किया है। दिवाली के एक कार्यक्रम में ट्रंप ने कहा था कि मोदी 'रूस से ज्यादा तेल नहीं खरीदेंगे'। उन्होंने यूक्रेन में युद्ध समाप्त करने के साझा लक्ष्य पर जोर दिया था। मोदी ने सोशल मीडिया पर ट्रंप को दिवाली की शुभकामनाएं दीं। लेकिन, इस कथित प्रतिबद्धता की कोई पुष्टि नहीं की।
आंकड़े बता रहे हैं लगातार बढ़ रहा व्यापार
भारत और रूस के बीच व्यापार लगातार बढ़ रहा है। हालांकि, यह अभी भी ऊर्जा आयात की ओर झुका हुआ है। भारत जो कुछ भी रूस से खरीदता है, उसका लगभग 90% खनिज ईंधन - कच्चा तेल, कोयला और संबंधित उत्पाद - के रूप में होता है। यह उनके आर्थिक साझेदारी का एक मुख्य आधार है।
द इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 में भारत के कुल आयात में खनिज ईंधन, तेल और खनिज मोम का हिस्सा 54.2% था। वित्त वर्ष 2024-25 में यह थोड़ा बढ़कर 56.9% हो गया। अन्य श्रेणियों में मिलीजुली हलचल देखी गई। पशु और वनस्पति वसा और तेलों का हिस्सा 1.3% से बढ़कर 2.4% हो गया। जबकि उर्वरकों का हिस्सा 2.1% से घटकर 1.8% रह गया। परियोजना माल, जिनका उपयोग विशिष्ट औद्योगिक या बुनियादी ढांचा उद्देश्यों के लिए किया जाता है, 0.8% से घटकर 0.6% हो गया। मोती, कीमती और अर्ध-कीमती पत्थर 1.2% से घटकर 0.4% रह गए।
ऊर्जा पर यह भारी निर्भरता भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए रूस के रणनीतिक महत्व को उजागर करती है। हालांकि, नई दिल्ली अपनी निर्यात टोकरी का विस्तार करके इस व्यापार समीकरण को संतुलित करने के लिए भी काम कर रही है। इसका लक्ष्य मशीनरी, फार्मास्यूटिकल्स और रसायनों के पारंपरिक स्तंभों से आगे बढ़कर कृषि वस्तुओं से लेकर प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों और निर्मित वस्तुओं तक उत्पादों की विस्तृत श्रृंखला को बढ़ावा देना है।
आ रहा है बड़ा फर्करूस को भारत के निर्यात का दायरा लगातार चौड़ा हो रहा है, जो पारंपरिक क्षेत्रों से परे जाने के स्पष्ट प्रयास को दर्शाता है। पिछले एक साल में भारी उद्योग से लेकर उच्च-मूल्य वाले विनिर्माण तक, कई श्रेणियों में बढ़ोतरी देखी गई है। वित्त वर्ष 2023-24 में परमाणु रिएक्टरों, बॉयलर, मशीनरी और यांत्रिक उपकरणों का निर्यात 6.5 लाख डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 में 11.4 लाख डॉलर हो गया। फार्मास्युटिकल उत्पादों में यह 3.9 लाख डॉलर से बढ़कर 4.2 लाख डॉलर, कार्बनिक रसायनों में 3.4 लाख डॉलर से बढ़कर 3.7 लाख डॉलर, विद्युत मशीनरी और पुर्जों में 3.5 लाख डॉलर से बढ़कर 3.6 लाख डॉलर और अकार्बनिक रसायनों में 2.1 लाख डॉलर से बढ़कर 2.4 लाख डॉलर हो गया। कृषि और समुद्री उत्पाद, जिन्होंने पारंपरिक रूप से भारत-रूस व्यापार में छोटी भूमिका निभाई है, अब रफ्तार पकड़ रहे हैं।
वित्त वर्ष 2025-26 की अप्रैल-अगस्त अवधि के लिए निर्यात में तेज उछाल देखा गया। समुद्री वस्तुओं से लेकर फल, सब्जियों, जूस तक में यह बढ़ोतरी हुई। यह भारत के व्यापार दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है। देश केवल अपनी मौजूदा ताकत पर दोगुना जोर नहीं दे रहा है। अलबत्ता, कुछ प्रमुख बाजारों पर निर्भरता कम करने और दीर्घकालिक रूप से अधिक स्थिर विकास सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय रूप से अपने निर्यात आधार का विस्तार कर रहा है।
भारत के डायवर्सिफिकेशन के प्रयास का एक महत्वपूर्ण कारण अमेरिका की ओर से भारतीय निर्यात लगाए गए 50% टैरिफ हैं। इन टैरिफ ने भारत के 60% से ज्यादा निर्यात को टारगेट किया। इसमें कपड़ा, रत्न और आभूषण, समुद्री उत्पाद और चमड़े के सामान जैसे प्रमुख श्रम-गहन क्षेत्र शामिल हैं। वहीं, फार्मास्यूटिकल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स काफी हद तक छूट गए।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया था कि प्रधानमंत्री मोदी ने उनसे रूसी तेल की खरीद कम करने का वादा किया है। दिवाली के एक कार्यक्रम में ट्रंप ने कहा था कि मोदी 'रूस से ज्यादा तेल नहीं खरीदेंगे'। उन्होंने यूक्रेन में युद्ध समाप्त करने के साझा लक्ष्य पर जोर दिया था। मोदी ने सोशल मीडिया पर ट्रंप को दिवाली की शुभकामनाएं दीं। लेकिन, इस कथित प्रतिबद्धता की कोई पुष्टि नहीं की।
आंकड़े बता रहे हैं लगातार बढ़ रहा व्यापार
भारत और रूस के बीच व्यापार लगातार बढ़ रहा है। हालांकि, यह अभी भी ऊर्जा आयात की ओर झुका हुआ है। भारत जो कुछ भी रूस से खरीदता है, उसका लगभग 90% खनिज ईंधन - कच्चा तेल, कोयला और संबंधित उत्पाद - के रूप में होता है। यह उनके आर्थिक साझेदारी का एक मुख्य आधार है।
द इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 में भारत के कुल आयात में खनिज ईंधन, तेल और खनिज मोम का हिस्सा 54.2% था। वित्त वर्ष 2024-25 में यह थोड़ा बढ़कर 56.9% हो गया। अन्य श्रेणियों में मिलीजुली हलचल देखी गई। पशु और वनस्पति वसा और तेलों का हिस्सा 1.3% से बढ़कर 2.4% हो गया। जबकि उर्वरकों का हिस्सा 2.1% से घटकर 1.8% रह गया। परियोजना माल, जिनका उपयोग विशिष्ट औद्योगिक या बुनियादी ढांचा उद्देश्यों के लिए किया जाता है, 0.8% से घटकर 0.6% हो गया। मोती, कीमती और अर्ध-कीमती पत्थर 1.2% से घटकर 0.4% रह गए।
ऊर्जा पर यह भारी निर्भरता भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए रूस के रणनीतिक महत्व को उजागर करती है। हालांकि, नई दिल्ली अपनी निर्यात टोकरी का विस्तार करके इस व्यापार समीकरण को संतुलित करने के लिए भी काम कर रही है। इसका लक्ष्य मशीनरी, फार्मास्यूटिकल्स और रसायनों के पारंपरिक स्तंभों से आगे बढ़कर कृषि वस्तुओं से लेकर प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों और निर्मित वस्तुओं तक उत्पादों की विस्तृत श्रृंखला को बढ़ावा देना है।
आ रहा है बड़ा फर्करूस को भारत के निर्यात का दायरा लगातार चौड़ा हो रहा है, जो पारंपरिक क्षेत्रों से परे जाने के स्पष्ट प्रयास को दर्शाता है। पिछले एक साल में भारी उद्योग से लेकर उच्च-मूल्य वाले विनिर्माण तक, कई श्रेणियों में बढ़ोतरी देखी गई है। वित्त वर्ष 2023-24 में परमाणु रिएक्टरों, बॉयलर, मशीनरी और यांत्रिक उपकरणों का निर्यात 6.5 लाख डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 में 11.4 लाख डॉलर हो गया। फार्मास्युटिकल उत्पादों में यह 3.9 लाख डॉलर से बढ़कर 4.2 लाख डॉलर, कार्बनिक रसायनों में 3.4 लाख डॉलर से बढ़कर 3.7 लाख डॉलर, विद्युत मशीनरी और पुर्जों में 3.5 लाख डॉलर से बढ़कर 3.6 लाख डॉलर और अकार्बनिक रसायनों में 2.1 लाख डॉलर से बढ़कर 2.4 लाख डॉलर हो गया। कृषि और समुद्री उत्पाद, जिन्होंने पारंपरिक रूप से भारत-रूस व्यापार में छोटी भूमिका निभाई है, अब रफ्तार पकड़ रहे हैं।
वित्त वर्ष 2025-26 की अप्रैल-अगस्त अवधि के लिए निर्यात में तेज उछाल देखा गया। समुद्री वस्तुओं से लेकर फल, सब्जियों, जूस तक में यह बढ़ोतरी हुई। यह भारत के व्यापार दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है। देश केवल अपनी मौजूदा ताकत पर दोगुना जोर नहीं दे रहा है। अलबत्ता, कुछ प्रमुख बाजारों पर निर्भरता कम करने और दीर्घकालिक रूप से अधिक स्थिर विकास सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय रूप से अपने निर्यात आधार का विस्तार कर रहा है।
भारत के डायवर्सिफिकेशन के प्रयास का एक महत्वपूर्ण कारण अमेरिका की ओर से भारतीय निर्यात लगाए गए 50% टैरिफ हैं। इन टैरिफ ने भारत के 60% से ज्यादा निर्यात को टारगेट किया। इसमें कपड़ा, रत्न और आभूषण, समुद्री उत्पाद और चमड़े के सामान जैसे प्रमुख श्रम-गहन क्षेत्र शामिल हैं। वहीं, फार्मास्यूटिकल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स काफी हद तक छूट गए।
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