इस्लामबाद: पाकिस्तान और अमेरिका के संबंध बीते कुछ महीनों में बहुत तेजी से बदले हैं। अमेरिका के डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने पाकिस्तान को काफी ज्यादा अहमियत दी है। खासतौर से पाक सेना प्रमुख असीम मुनीर से जून के बाद से ट्रंप दो बार मिल चुके हैं। ट्रंप ने सार्वजनिक मंचों से मुनीर को फेवरेट फील्ड मार्शल तक कहा है। इस बीच पाक सेना और सरकार का टीएलपी जैसे कट्टरपंथी संगठन पर कड़ा रुख भी दिखा है। इन घटनाक्रमों को जोड़ते हुए प्रवीण स्वामी ने द प्रिंट में अपने लेख में कहा है कि ऐसा लगता है कि मुनीर को ट्रंप जिहाद के इलाज की तरह देख रहे हैं लेकिन हकीकत में वह बीमारी हैं।
प्रवीण ने जिया उल हक के समय हुए पाकिस्तान के 'इस्लामीकरण' की बात करते हुए कहा है कि जिया के विलियम पुटशर को इस्लामाबाद स्थित अमेरिकी दूतावास से कायदे-आजम विश्वविद्यालय के छात्रों ने बंधक बना लिया था। उनके 'इस्लामी आंदोलन के खिलाफ' होने पर छात्रों में गुस्सा था। इसी दौरान सैन्य शासक जनरल जिया उल हक अमेरिका को काबा पर हमले के लिए जिम्मेदार कह रहे थे। मस्जिद अल-हरम पर सऊदी विद्रोहियों के कब्जे के बाद इस्लामाबाद में दूतावास पर लगे अमेरिकी झंडे को उतारकर जला दिया गया था।
जिया और मुनीरअसीम मुनीर ने हाल ही में वह किया, जो जनरल जिया नहीं करते। गाजा शांति योजना का विरोध करने के लिए अमेरिकी दूतावास पर मार्च करने वाले दक्षिणपंथी तहरीक-ए-लब्बैक (TLP) के प्रदर्शन को ना सिर्फ कुचला बल्कि उन पर गोली भी चलावाई। मुनीर ने जिया की तरह अपने उद्देश्य के लिए राजनीतिक इस्लाम को शामिल किया है। जिया ने मौलवियों को बहलाकर अपने पक्ष में किया था। वहीं मुनीर उन्हें अपने नियंत्रण में रखने की कोशिश में हैं।
टीएलपी को कुचलने का फैसला पाकिस्तानी राजनीति में अहम मोड़ है। दो साल पहले टीएलपी के विरोध मार्च के बाद प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने ईशनिंदा विरोधी विभाग स्थापित करने, जेल में बंद आतंकी आफिया सिद्दीकी की रिहाई की मांग के लिए राजनयिक पत्र जारी करने और ईंधन की कीमतों को कम करने पर सहमति व्यक्त की थी।
पाक सेना और कट्टरपंथीटीएलपी बनने वाले आंदोलन के संस्थापक खादिम हुसैन रिजवी ने गैर-मुस्लिमों के साथ मेलजोल ना रखने और पश्चिमी रिवाजों को ना अपनाने की बात कही थी। साल 2020 में लाहौर में हुसैन रिजवी की मौत के बाद उनके जनाजे में बहुत बड़ी भीड़ उमड़ी थी। इस कार्यक्रम में राजनीतिक दलों के नेता शामिल हुए और तत्कालीन पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने अपनी संवेदना व्यक्त की।
खादिम हुसैन के बेटे साद हुसैन रिजवी के नेतृत्व में भी टीएलपी ने अपना कड़ा रुख जारी रखा है। 2020 में टीएलपी ने ईशनिंदा विरोधी लामबंदी का दौर शुरू किया। साद ने सार्वजनिक जीवन में इस्लाम को बढ़ावा देने, कथित ईशनिंदा के लिए मीडिया की जांच करने और इस्लामी कल्याणकारी राज्य बनाने में मदद करने के लिए आंदोलन चलाया है।
मुनीर की TLP पर कार्रवाईटीएलपी पर कार्रवाई से पता चलता है कि मुनीर एक नया रास्ता अपनाने की कोशिश कर रहे हैं। पूर्व सैन्य तानाशाहों की तरह मौलवियों को खुश करने के बजाय धार्मिक दक्षिणपंथी आंदोलनों को कुचल रहे हैं। हालांकि इसे आधुनिकीकरण नहीं माना जाना चाहिए। दरअसल मुनीर धार्मिक साख के आधार पर अपना प्रभुत्व स्थापित करते हैं। वह खुद को आध्यात्मिक और दुनिया दोनों तरह की सत्ता के स्रोत के रूप में प्रचारित करते हैं।
अमेरिका को मुनीर पाकिस्तान में इस्लामवाद को कुचलने और अफगानिस्तान में जिहादियों से निपटने का रास्ता दिखते हैं। जिया और मुशर्रफ के अनुभव बताते हैं कि मुनीर का अधिनायकवाद और लोकतांत्रिक संस्थाओं का गला घोंटना धार्मिक कट्टरवाद को मजबूत करने का ही काम करेगा। अमेरिका के लिए आसिम ऐसे डॉक्टर हैं, जिन्हें जिहादवाद के वायरस को कुचलने के लिए कहा था। हालांकि वास्तव में वह खुद एक बीमारी है।
प्रवीण ने जिया उल हक के समय हुए पाकिस्तान के 'इस्लामीकरण' की बात करते हुए कहा है कि जिया के विलियम पुटशर को इस्लामाबाद स्थित अमेरिकी दूतावास से कायदे-आजम विश्वविद्यालय के छात्रों ने बंधक बना लिया था। उनके 'इस्लामी आंदोलन के खिलाफ' होने पर छात्रों में गुस्सा था। इसी दौरान सैन्य शासक जनरल जिया उल हक अमेरिका को काबा पर हमले के लिए जिम्मेदार कह रहे थे। मस्जिद अल-हरम पर सऊदी विद्रोहियों के कब्जे के बाद इस्लामाबाद में दूतावास पर लगे अमेरिकी झंडे को उतारकर जला दिया गया था।
जिया और मुनीरअसीम मुनीर ने हाल ही में वह किया, जो जनरल जिया नहीं करते। गाजा शांति योजना का विरोध करने के लिए अमेरिकी दूतावास पर मार्च करने वाले दक्षिणपंथी तहरीक-ए-लब्बैक (TLP) के प्रदर्शन को ना सिर्फ कुचला बल्कि उन पर गोली भी चलावाई। मुनीर ने जिया की तरह अपने उद्देश्य के लिए राजनीतिक इस्लाम को शामिल किया है। जिया ने मौलवियों को बहलाकर अपने पक्ष में किया था। वहीं मुनीर उन्हें अपने नियंत्रण में रखने की कोशिश में हैं।
टीएलपी को कुचलने का फैसला पाकिस्तानी राजनीति में अहम मोड़ है। दो साल पहले टीएलपी के विरोध मार्च के बाद प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने ईशनिंदा विरोधी विभाग स्थापित करने, जेल में बंद आतंकी आफिया सिद्दीकी की रिहाई की मांग के लिए राजनयिक पत्र जारी करने और ईंधन की कीमतों को कम करने पर सहमति व्यक्त की थी।
पाक सेना और कट्टरपंथीटीएलपी बनने वाले आंदोलन के संस्थापक खादिम हुसैन रिजवी ने गैर-मुस्लिमों के साथ मेलजोल ना रखने और पश्चिमी रिवाजों को ना अपनाने की बात कही थी। साल 2020 में लाहौर में हुसैन रिजवी की मौत के बाद उनके जनाजे में बहुत बड़ी भीड़ उमड़ी थी। इस कार्यक्रम में राजनीतिक दलों के नेता शामिल हुए और तत्कालीन पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने अपनी संवेदना व्यक्त की।
खादिम हुसैन के बेटे साद हुसैन रिजवी के नेतृत्व में भी टीएलपी ने अपना कड़ा रुख जारी रखा है। 2020 में टीएलपी ने ईशनिंदा विरोधी लामबंदी का दौर शुरू किया। साद ने सार्वजनिक जीवन में इस्लाम को बढ़ावा देने, कथित ईशनिंदा के लिए मीडिया की जांच करने और इस्लामी कल्याणकारी राज्य बनाने में मदद करने के लिए आंदोलन चलाया है।
मुनीर की TLP पर कार्रवाईटीएलपी पर कार्रवाई से पता चलता है कि मुनीर एक नया रास्ता अपनाने की कोशिश कर रहे हैं। पूर्व सैन्य तानाशाहों की तरह मौलवियों को खुश करने के बजाय धार्मिक दक्षिणपंथी आंदोलनों को कुचल रहे हैं। हालांकि इसे आधुनिकीकरण नहीं माना जाना चाहिए। दरअसल मुनीर धार्मिक साख के आधार पर अपना प्रभुत्व स्थापित करते हैं। वह खुद को आध्यात्मिक और दुनिया दोनों तरह की सत्ता के स्रोत के रूप में प्रचारित करते हैं।
अमेरिका को मुनीर पाकिस्तान में इस्लामवाद को कुचलने और अफगानिस्तान में जिहादियों से निपटने का रास्ता दिखते हैं। जिया और मुशर्रफ के अनुभव बताते हैं कि मुनीर का अधिनायकवाद और लोकतांत्रिक संस्थाओं का गला घोंटना धार्मिक कट्टरवाद को मजबूत करने का ही काम करेगा। अमेरिका के लिए आसिम ऐसे डॉक्टर हैं, जिन्हें जिहादवाद के वायरस को कुचलने के लिए कहा था। हालांकि वास्तव में वह खुद एक बीमारी है।