रियाद: सऊदी अरब की सरकार ने कफाला सिस्टम को खत्म कर दिया है। अरब देशों में बीते कई दशकों से ये सिस्टम भारतीयों के लिए बड़ी परेशानी का सबब रहा है। इस सिस्टम की वजह से अरब में काम करने के लिए जाने वाले लाखों भारतीयों को मूल मानवाधिकारों से वंचित होना पड़ता है। कफाला एक तरह से लाखों भारतीयों को अरब देशों में बंधक मजदूर या गुलाम की तरह रहने पर मजबूर कर देता है। सऊदी में इसके खत्म होने से भारत, पाकिस्तान जैसे देशों के लोगों ने खासतौर से राहत की सांस ली है, जहां से बड़ी तादाद में कामगार सऊदी जाते हैं। हालांकि कई गल्फ देशों में ये सिस्टम अभी बरकरार है।
कफाला की वजह से कैसे भारतीय कामगार गल्फ में जाकर गुलामी को मजबूर हो जाते है, इसकी बानगी इंडिया टुडे की रिपोर्ट से मिलती है। रिपोर्ट बताती है कि 2017 में कर्नाटक की एक नर्स 25,000 रुपए प्रति माह वेतन के वादे के साथ सऊदी अरब पहुंची। उसे उसके कफील (नियोक्ता) ने तस्करी कर गुलाम बना लिया गया। आठ महीने बाद उसे आजादी मिल सकी। ऐसे भी उदाहरण हैं, जब इस सिस्टम में फंसकर कई लोगों ने मौत को गले लगा लिया। कपाला खत्म होने से सऊदी में केस आगे ना होने की उम्मीद जगती है।
कई देशों में अब भी लागूसऊदी अरब में कफाला खत्म हो गया है लेकिन खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के कई देशों में यह जारी है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) के आंकड़ों के हिसाब से खाड़ी देशों में 2.4 करोड़ श्रमिक कफाला के नियंत्रण में हैं। इनमें से सबसे बड़ा हिस्सा 75 लाख भारतीयों का है। अधिकार समूहों ने कफाला की 'आधुनिक गुलामी' कहकर आलोचना की है।
कफाला व्यवस्था में कामगारों को एक ही नियोक्ता से बंधना पड़ता था। इससे उन्हें नौकरी बदलने, देश छोड़ने और यहां तक कि दुर्व्यवहार की रिपोर्ट करने के लिए भी अपने प्रायोजक की इजाजत जरूरी होती थी। यानी कामगार काम में दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ रहा है तो भी इसकी शिकायत नहीं कर सकता है। यह सीधेतौर पर किसी कामगार की स्थिति को गुलाम जैसी बना देता है।
कफाला बना देती है गुलामकफाला एक ऐसी व्यवस्था है, जो कामगारों को शोषण और अमानवीय परिस्थितियों में रहने को मजबूर करती है। कफाला को आधुनिक गुलामी कहना बिल्कुल सही है। इस सिस्टम में नियोक्ता को मिली शक्तियां कामगार का पासपोर्ट जब्त करने, वेतन ना देने, काम के घंटे बढ़ाने, शारीरिक और यौन हिंसा, यहां तक कि बंधक बनाकर काम कराने का दरवाजा खोलती हैं।
भारत के घरेलू सहायक और कम वेतन वाले मजदूरों के कई ऐसे मामले हैं, जहां वह बिना किसी कानूनी सहायता के अलगाव में फंस गए। एमनेस्टी, एचआरडब्ल्यू और आईएलओ की रिपोर्टें बताती हैं कि हर साल कई ऐसे मामले आते हैं। यहां तक कि कई भारतीय कामगारों की जान भी अमानवीय परिस्थितियों में काम करने की वजह से गई।
कफाला और दास्तामई 2025 में बोस्टन विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर कहा गया कि 'कफाला प्रणाली आधुनिक दासता को बढ़ावा देती है।' यह सिस्टम एक प्रकार की अप्रत्यक्ष दासता है, जिससे प्रवासियों के भयावह परिस्थितियों से बचना मुश्किल हो जाता है। इसमें अमानवीय परिस्थिति बनती हैं क्योंकि यह श्रमिकों को पूरी तरह से उनके नियोक्ताओं पर निर्भर बना देती है।
कफाला की वजह से कैसे भारतीय कामगार गल्फ में जाकर गुलामी को मजबूर हो जाते है, इसकी बानगी इंडिया टुडे की रिपोर्ट से मिलती है। रिपोर्ट बताती है कि 2017 में कर्नाटक की एक नर्स 25,000 रुपए प्रति माह वेतन के वादे के साथ सऊदी अरब पहुंची। उसे उसके कफील (नियोक्ता) ने तस्करी कर गुलाम बना लिया गया। आठ महीने बाद उसे आजादी मिल सकी। ऐसे भी उदाहरण हैं, जब इस सिस्टम में फंसकर कई लोगों ने मौत को गले लगा लिया। कपाला खत्म होने से सऊदी में केस आगे ना होने की उम्मीद जगती है।
कई देशों में अब भी लागूसऊदी अरब में कफाला खत्म हो गया है लेकिन खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के कई देशों में यह जारी है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) के आंकड़ों के हिसाब से खाड़ी देशों में 2.4 करोड़ श्रमिक कफाला के नियंत्रण में हैं। इनमें से सबसे बड़ा हिस्सा 75 लाख भारतीयों का है। अधिकार समूहों ने कफाला की 'आधुनिक गुलामी' कहकर आलोचना की है।
कफाला व्यवस्था में कामगारों को एक ही नियोक्ता से बंधना पड़ता था। इससे उन्हें नौकरी बदलने, देश छोड़ने और यहां तक कि दुर्व्यवहार की रिपोर्ट करने के लिए भी अपने प्रायोजक की इजाजत जरूरी होती थी। यानी कामगार काम में दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ रहा है तो भी इसकी शिकायत नहीं कर सकता है। यह सीधेतौर पर किसी कामगार की स्थिति को गुलाम जैसी बना देता है।
कफाला बना देती है गुलामकफाला एक ऐसी व्यवस्था है, जो कामगारों को शोषण और अमानवीय परिस्थितियों में रहने को मजबूर करती है। कफाला को आधुनिक गुलामी कहना बिल्कुल सही है। इस सिस्टम में नियोक्ता को मिली शक्तियां कामगार का पासपोर्ट जब्त करने, वेतन ना देने, काम के घंटे बढ़ाने, शारीरिक और यौन हिंसा, यहां तक कि बंधक बनाकर काम कराने का दरवाजा खोलती हैं।
भारत के घरेलू सहायक और कम वेतन वाले मजदूरों के कई ऐसे मामले हैं, जहां वह बिना किसी कानूनी सहायता के अलगाव में फंस गए। एमनेस्टी, एचआरडब्ल्यू और आईएलओ की रिपोर्टें बताती हैं कि हर साल कई ऐसे मामले आते हैं। यहां तक कि कई भारतीय कामगारों की जान भी अमानवीय परिस्थितियों में काम करने की वजह से गई।
कफाला और दास्तामई 2025 में बोस्टन विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर कहा गया कि 'कफाला प्रणाली आधुनिक दासता को बढ़ावा देती है।' यह सिस्टम एक प्रकार की अप्रत्यक्ष दासता है, जिससे प्रवासियों के भयावह परिस्थितियों से बचना मुश्किल हो जाता है। इसमें अमानवीय परिस्थिति बनती हैं क्योंकि यह श्रमिकों को पूरी तरह से उनके नियोक्ताओं पर निर्भर बना देती है।
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