बेंगलुरु, 29 मई . कर्नाटक उच्च न्यायालय ने हुबली दंगा मामले के आरोपितों सहित विभिन्न प्रमुख हस्तियों के खिलाफ 43 आपराधिक मामले वापस लेने के कर्नाटक सरकार द्वारा जारी आदेश को रद्द कर दिया है. अधिवक्ता गिरीश भारद्वाज ने सरकार के आदेश को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की थी, जिस पर सुनवाई करते हुये कोर्ट ने यह आदेश दिया है. कोर्ट का यह फैसला राज्य सरकार के लिए झटका माना जा रहा है.
गिरीश भारद्वाज की याचिका पर सुनवाई करने वाले मुख्य न्यायाधीश एन.वी. अंजारिया और न्यायमूर्ति के.वी. अरविंद की खंडपीठ ने सरकार की कार्रवाई की गहन समीक्षा के बाद फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि मामलों को वापस लेना अवैध था. यह जरूरी है कि कानूनी प्रक्रिया की अखंडता को कमजोर करने वाली कार्रवाइयों की न्यायिक समीक्षा की जाए. इस तरह के वापसी उपायों पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए क्योंकि आपराधिक मामले आम जनता की सुरक्षा से संबंधित होते हैं.
दरअसल, राज्य सरकार ने 2020-21 में कुछ गंभीर दंगा मामलों और संदिग्ध आतंकवादी गतिविधियों से जुड़े 43 मामले वापस ले लिए थे. इस कार्रवाई के राजनीतिक रूप से प्रभावशाली लोगों के पक्ष में किए जाने के आरोपों के बीच यह जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई थी.
उल्लेखनीय है कि इस जनहित याचिका में 43 आपराधिक मामलों को वापस लेने के लिए अक्टूबर 2024 में जारी सरकारी आदेश (जीओ) की वैधता पर सवाल उठाया गया है. याचिका में कहा गया है कि इन 43 मामलों में कुछ आरोपितों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम 1967, सार्वजनिक संपत्ति विनाश निवारण अधिनियम 1984 और धार्मिक संस्थान (दुरुपयोग निवारण) अधिनियम 1988 के प्रावधानों के तहत गंभीर आरोप लगाए गए हैं. इनमें हुबली दंगों का 2022 का मामला भी शामिल है, जिसमें भीड़ ने सोशल मीडिया पर एक विवादास्पद पोस्ट के मुद्दे पर कई पुलिस कर्मियों पर हमला किया था और उनके साथ मारपीट की थी.
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/ राकेश महादेवप्पा
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