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लोकतंत्र की रक्षा में संघ परिवार की बड़ी भूमिका, युवाओं को जानना चाहिए वह भयावह इतिहासः नितिन गडकरी

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-आपातकाल की 50वीं बरसी पर आयोजित कार्यक्रम में बोले केंद्रीय मंत्री

नई दिल्ली, 26 जून (Udaipur Kiran) । केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने गुरुवार को कहा कि देश में 1975 में लगाए गए आपातकाल के दौरान लोकतंत्र को कुचलने का प्रयास हुआ था और उसकी रक्षा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं उससे प्रेरित संगठनों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। उन्होंने कहा कि आज के युवाओं को आपातकाल और इससे जुड़ा भयावह इतिहास जरूर जानना-समझना चाहिए।

केंद्रीय मंत्री गडकरी आपातकाल की 50वीं बरसी पर बहुभाषी न्यूज एजेंसी (Udaipur Kiran) के तत्वावधान में डॉ. अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। गडकरी ने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी सत्ता बचाने के लिए संविधान के मूल भाव को बदला, प्रेस, संसद और न्यायपालिका पर दबाव डाला गया। उन्होंने बताया कि उस दौर में ऐसा भय का माहौल था कि लोग अपने अधिकारों के लिए भी आवाज नहीं उठा सकते थे।

गडकरी ने बताया कि 1975 में वह मैट्रिक के छात्र थे और आपातकाल की सुबह अखबार नहीं छपे थे। उस दौर में हजारों निर्दोष लोगों को जेल में डाल दिया गया। संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार समाप्त कर दिए गए थे। पुलिस की गोली से मारे गए व्यक्ति को भी न्याय मांगने का हक नहीं था।

उन्होंने जयप्रकाश नारायण द्वारा शुरू किए गए भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की चर्चा करते हुए कहा कि बिहार आंदोलन के केंद्र में था, जिसमें अनेक छात्र संगठनों और संघ से प्रेरित कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। उन्होंने पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे, वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय और सामाजिक कार्यकर्ता केएन गोविंदाचार्य जैसे नेताओं के योगदान को भी याद किया।

गडकरी ने कहा कि रायबरेली चुनाव में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग पर जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला सुनाया, तब उन्होंने इस्तीफा देने की बजाय देश पर आपातकाल थोप दिया। उन्होंने कहा कि इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा जैसे नारों के जरिए चाटुकारिता की पराकाष्ठा देखी गई। इस दौरान कांग्रेस ने भारतीय संविधान की जमकर धज्जियां उड़ाईं, जबकि आज उसी पार्टी के नेता दूसरों पर संविधान बदलने का आरोप लगाते हैं।

गडकरी ने कहा कि आपातकाल का विरोध करने वालों में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडिस जैसे नेता थे, जिन्हें जेल में डाल दिया गया था। संघ के हजारों कार्यकर्ताओं ने भूमिगत रहकर लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघर्ष किया। उन्होंने कहा कि आपातकाल के 50 वर्ष हमें यह याद दिलाते हैं कि लोकतंत्र की रक्षा केवल कानून से नहीं, बल्कि लोगों की आस्था, संघर्ष और बलिदान से होती है। उन्होंने युवाओं से आग्रह किया कि वे इस इतिहास को जानें और लोकतंत्र की रक्षा के लिए सजग रहें।—————

(Udaipur Kiran) / सुशील कुमार

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