बीकानेर, 14 जुलाई (Udaipur Kiran) । स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय (एसकेआरएयू), बीकानेर एवं एपीडा (एपीईडीए), नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में राजस्थान की मूंगफली अर्थव्यवस्था का संवर्धन: व्यवसायिक अवसर, प्रसंस्करण चुनौतियाँ, मूल्य संवर्धन एवं निर्यात संभावनाएँ विषय पर एक दिवसीय मंथन कार्यक्रम आयोजित किया गया।
विश्वविद्यालय के डीएचआरडी सभागार में आयोजित कार्यक्रम में कुलगुरु डॉ अरुण कुमार ने कहा कि कार्यशाला में प्रस्तुत सुझाव और निष्कर्ष राज्य की मूंगफली आधारित कृषि प्रणाली को अधिक वैज्ञानिक, लाभकारी एवं निर्यातोन्मुख बनाने की दिशा में मार्गदर्शक सिद्ध होंगे।
इस अवसर पर पूर्व बोर्ड सदस्य एपीडा एवं निदेशक, साउथ एशिया बायोटेक सेंटर, जोधपुर डॉ. भागीरथ चौधरी , उप महाप्रबंधक, एपीडा, नई दिल्ली श्रीमन प्रकाश निदेशक शोध डॉ. विजय प्रकाश, अतिरिक्त निदेशक, कृषि विभाग डॉ. टी. के. जोशी, संयुक्त निदेशक कृषि कैलाश चौधरी, सहित अन्य वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सुजीत यादव, डॉ. एस. पी. सिंह, तथा डॉ. बी. डी. एस. नाथावत, डॉ नरेंद्र कुमार ने प्रतिभागियों से संवाद कर उनकी शंकाओं का समाधान किया।
कार्यक्रम में तीन तकनीकी सत्रों में वैज्ञानिकों, कृषि अधिकारियों, उद्योग प्रतिनिधियों, निर्यातकों एवं किसानों ने मूंगफली उत्पादन की तकनीक, रोग प्रबंधन, एफ्लाटॉक्सिन नियंत्रण, प्रसंस्करण एवं विपणन की रणनीतियों पर गहन चर्चा की।
शोध निदेशक डॉ विजय प्रकाश ने कहा कि भारत में मूंगफली की औसत उत्पादकता अभी भी 2.0 टन प्रति हेक्टेयर से कम है, जबकि चीन में यह 4.0 टन प्रति हेक्टेयर है। इसे बढ़ाने के लिए उन्नत किस्मों, संतुलित पोषण, उचित सिंचाई प्रबंधन तथा एफ्लाटॉक्सिन मुक्त उत्पादन तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता है। साथ ही, बैग में भंडारण तथा आवश्यक नमी बनाए रखने जैसे उपाय सुझाए गए।
वैज्ञानिकों ने बताया कि एफ्लाटॉक्सिन एक प्रमुख निर्यात बाधा है, जिसकी स्वीकार्यता यूरोपीय देशों में <2 पीपीबी और अन्य देशों में <15 पीपीबी है। इसके प्रबंधन हेतु खेत से लेकर भंडारण तक सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। विश्वविद्यालय स्तर पर एफ्लाटॉक्सिन परीक्षण के लिए पीसीआर या ईएलाईएसए आधारित प्रयोगशाला की स्थापना की आवश्यकता पर भी बल दिया गया।
कृषि विभाग के अधिकारियों ने राजस्थान सरकार द्वारा उच्च ओलिक अम्ल वाली मूंगफली किस्मों को प्रोत्साहन के तहत 4000 किसानों को बीज वितरित किए गए हैं। अनुबंध खेती को बढ़ावा देने और किसान-उद्योग साझेदारी को मजबूत करने पर भी विचार प्रस्तुत किए गए। डॉ. एच. एल. देशवाल ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
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(Udaipur Kiran) / राजीव
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