उत्तर प्रदेश के बहुचर्चित पीसीएस ज्योति मौर्या मामले में एक नया मोड़ सामने आया है। ज्योति मौर्या के पति, आलोक मौर्या ने अपनी अफसर पत्नी से गुजारा भत्ता प्राप्त करने की मांग को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया है। इस मामले ने न केवल व्यक्तिगत विवादों को सुर्खियों में लाया है, बल्कि वैवाहिक और सामाजिक जिम्मेदारियों पर भी सवाल उठाए हैं। आइए, इस मामले की गहराई में उतरकर समझते हैं कि आलोक मौर्या की याचिका और हाईकोर्ट का फैसला क्या संदेश देता है।
पृष्ठभूमि: ज्योति और आलोक का विवादज्योति मौर्या, एक प्रख्यात पीसीएस अधिकारी, और उनके पति आलोक मौर्या के बीच वैवाहिक विवाद लंबे समय से चर्चा का विषय रहा है। आलोक ने दावा किया है कि उनकी पत्नी, जो एक उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारी हैं, उनकी तुलना में कहीं अधिक आय अर्जित करती हैं। दूसरी ओर, आलोक की आय सीमित है, जिसके कारण वह अपनी आजीविका चलाने में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। इस आधार पर, आलोक ने आजमगढ़ की पारिवारिक अदालत में गुजारा भत्ता की मांग की थी, लेकिन उनकी याचिका खारिज कर दी गई। इस फैसले से असंतुष्ट होकर, आलोक ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील दायर की।
हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण कदमइलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ, जिसमें न्यायमूर्ति अरिंदम सिन्हा और डॉ. वाईके श्रीवास्तव शामिल थे, ने आलोक मौर्या की अपील पर विचार किया। आलोक ने अपनी याचिका में तर्क दिया कि उनकी पत्नी की आर्थिक स्थिति मजबूत होने के कारण, वैवाहिक विवादों के निपटारे तक उन्हें गुजारा भत्ता प्रदान किया जाना चाहिए। हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए ज्योति मौर्या को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 8 अगस्त, 2025 की तारीख तय की है।
हालांकि, कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि आलोक की अपील निर्धारित समय से 77 दिन की देरी से दाखिल की गई थी और पारिवारिक अदालत की डिक्री की प्रमाणित प्रति भी प्रस्तुत नहीं की गई थी। इसके बावजूद, आलोक ने देरी को माफ करने और प्रति दाखिल करने की छूट की मांग की, जिसे कोर्ट ने विचार के लिए स्वीकार किया। यह कदम दर्शाता है कि हाईकोर्ट इस मामले में निष्पक्ष और गहन सुनवाई के लिए प्रतिबद्ध है।
सामाजिक और कानूनी परिप्रेक्ष्यज्योति मौर्या और आलोक मौर्या का मामला केवल एक व्यक्तिगत विवाद तक सीमित नहीं है; यह समाज में लैंगिक भूमिकाओं और आर्थिक असमानता जैसे गंभीर मुद्दों को भी उजागर करता है। परंपरागत रूप से, गुजारा भत्ता की मांग महिलाओं द्वारा की जाती रही है, लेकिन इस मामले में एक पुरुष द्वारा ऐसी मांग उठाना सामाजिक बहस को नई दिशा देता है। यह सवाल उठता है कि क्या कानून और समाज अब पुरुषों को भी वैवाहिक विवादों में आर्थिक सहायता का हकदार मानने के लिए तैयार हैं?
क्या होगा अगला कदम?इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा जारी नोटिस के बाद, सभी की निगाहें 8 अगस्त की सुनवाई पर टिकी हैं। इस तारीख को कोर्ट यह तय करेगा कि क्या आलोक मौर्या की गुजारा भत्ता की मांग जायज है और क्या ज्योति मौर्या को इस संबंध में कोई आदेश दिया जाएगा। यह मामला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह वैवाहिक संबंधों और पारिवारिक जिम्मेदारियों के प्रति समाज की सोच को भी प्रभावित कर सकता है।
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