भारतीय संस्कृति में एकादशी का व्रत विशेष महत्व रखता है। प्रत्येक माह में दो बार आने वाली एकादशी को भगवान विष्णु का प्रिय दिन माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि इस दिन व्रत करने और तुलसी दल अर्पित करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उन्हें विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एकादशी माता कौन हैं और उनकी उत्पत्ति की कहानी क्या है? स्कंदपुराण में वर्णित इस रोचक कथा में एकादशी माता के उद्भव और उनके महान पराक्रम का वर्णन है। आइए, इस पौराणिक कथा को जानते हैं, जो भक्ति और शक्ति का अनूठा संगम प्रस्तुत करती है।
स्वर्ग पर संकट और देवताओं की पुकारपौराणिक काल में जब दैत्य मुर ने अपने उग्र स्वभाव और अपार बल से स्वर्गलोक पर आधिपत्य जमा लिया, तब सभी देवता भयभीत होकर भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे। इंद्र ने भगवान से विनती की, "हे प्रभु, महाबली मुर ने सभी देवताओं को परास्त कर स्वर्ग से बाहर कर दिया है। अग्नि, चंद्रमा, सूर्य, वायु और वरुण जैसे शक्तिशाली देवता भी उसके सामने असहाय हो गए हैं। हमारी रक्षा करें!" इंद्र ने बताया कि मुर तालजडू नामक भयंकर असुर का पुत्र है, जो चन्द्रावती नगरी में रहता है और उसका पराक्रम असीम है।
भगवान विष्णु का प्रकोप और युद्धइंद्र की बात सुनकर भगवान विष्णु को क्रोध आया। वे तत्काल देवताओं को साथ लेकर चन्द्रावती नगरी पहुंचे। वहां उन्होंने अपने दिव्य बाणों और सुदर्शन चक्र से दानव सेना का संहार शुरू किया। सैकड़ों दानव योद्धा उनके प्रहार से मृत्यु को प्राप्त हुए। युद्ध के बाद विश्राम के लिए भगवान विष्णु बदरी क्षेत्र की सिंहावती गुफा में गए, जो बारह योजन लंबी थी और जिसमें केवल एक ही प्रवेश द्वार था। वहां वे गहरी निद्रा में लीन हो गए।
एकादशी माता का प्रादुर्भावमुर दानव, जो भगवान विष्णु को मारने की फिराक में था, गुप्त रूप से गुफा में प्रवेश कर गया। सोते हुए भगवान को देखकर वह प्रसन्न हुआ और उसने सोचा कि यह उनके वध का उचित समय है। तभी चमत्कार हुआ! भगवान विष्णु के शरीर से एक तेजस्वी कन्या प्रकट हुईं। यह कन्या अत्यंत रूपवती, सौभाग्यशालिनी और दिव्य शस्त्रों में निपुण थी। वे भगवान के तेज से उत्पन्न हुई थीं और उनका बल असाधारण था।
मुर दानव का अंत और एकादशी का उदयमुर ने जब उस कन्या को देखा, तो उसने युद्ध की चुनौती दी। कन्या, जो युद्धकला में पारंगत थी, ने मुर के साथ भीषण युद्ध छेड़ दिया। उनकी हुंकार मात्र से महाबली मुर राख के ढेर में बदल गया। जब भगवान विष्णु जागे और मुर को मृत देखा, तो उन्होंने कन्या से पूछा, "इस दानव का वध किसने किया?" कन्या ने उत्तर दिया, "आपके ही आशीर्वाद से मैंने इस महादानव का अंत किया।" भगवान प्रसन्न हुए और बोले, "कल्याणी, तुमने तीनों लोकों को संकट से मुक्त किया है। मुझसे कोई वर मांगो।"
एकादशी माता का वरदानकन्या, जो साक्षात एकादशी माता थीं, ने कहा, "हे प्रभु, यदि आप प्रसन्न हैं, तो मुझे सभी तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ, विघ्नों का नाश करने वाली और सिद्धियां प्रदान करने वाली देवी बनने का वर दें। जो भक्त मेरे दिन पर उपवास करें, उन्हें धन, धर्म और मोक्ष की प्राप्ति हो।" भगवान विष्णु ने "तथास्तु" कहकर उनका वरदान स्वीकार किया और कहा, "तुम्हारी इच्छा पूर्ण होगी।"
एकादशी व्रत का महत्वइस कथा से यह स्पष्ट होता है कि एकादशी माता भगवान विष्णु की शक्ति का अवतार हैं। एकादशी का व्रत न केवल भक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह भक्तों को आध्यात्मिक और सांसारिक सुख प्रदान करता है। यह व्रत मनुष्य को पापों से मुक्ति दिलाता है और उसे भगवान विष्णु के निकट ले जाता है। कार्तिक मास में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है, क्योंकि इस मास में भगवान विष्णु की पूजा और तुलसी अर्पण से अनंत पुण्य प्राप्त होता है।
निष्कर्ष: भक्ति और शक्ति का प्रतीकएकादशी माता की यह कथा हमें सिखाती है कि भक्ति और शक्ति का संगम कितना प्रभावशाली हो सकता है। एकादशी का व्रत करने से न केवल हमारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, बल्कि हमारा जीवन भी पवित्र और सार्थक बनता है। आइए, इस पवित्र दिन पर भगवान विष्णु और एकादशी माता की कृपा प्राप्त करने के लिए व्रत और पूजा में लीन हों।
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